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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
की जैन श्राविकाएं उन पर मध्यकालीन राजनैतिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का प्रभाव, मुगलसाम्राज्य पर जैन धर्म का प्रभाव एवं उस समय जैन धर्म की प्रभावना में श्राविकाओं का योगदान, उत्तर और दक्षिण भारत की जैन श्राविकाओं एवं इस कालक्रम की महत्वपूर्ण श्राविकाओं के बारे में विस्तारपूर्वक विचार विनिमय किया गया है। अंत में आधुनिककालीन परिस्थितियाँ, राजनीति के क्षेत्र में श्राविकाएं, स्वतंत्रता संग्राम में जैन श्राविकाएं, इस काल की प्रभावशाली श्राविकाओं की गौरव गरिमा की अभिवृद्धि और अभिव्यक्ति करने में यह ग्रंथ पूर्णतः सक्षम है। इस प्रकार महाराज श्रीजी ने अतीत की गोद में समाई हुई अनेक श्राविकाओं का उल्लेख किया है। इतिहास के महत्त्व को इस ग्रंथ से भलीभांति जाना जा सकता है। आनेवाले समय में यह ग्रंथ मील का पत्थर साबित होगा। जो निश्चित रूप से पठन-पाठन, चिंतन-मनन, श्रवण की अक्षय निधि के रूप में आत्मीयता का रिश्ता जोड़ देगा। श्राविकाओं के ज्ञान-दर्शन-चारित्र की इस गौरव गाथा से एक अलौकिक प्रकाश जगतीतल पर निरन्तर प्रवाहित होता रहेगा। यद्यपि वह प्राचीन वैभव अब दर्शन पथ से तिरोहित हो चूका है तथापि धर्म की यह अक्षय कीर्ति सदा अक्षुण्ण रहेगी। जिस प्रकार सुंदर-सुंदर फूल चुनकर माली गुलदस्ता तैयार कर देता है, उसी प्रकार महासतीजी ने तथ्यों को उजागर कर अतिसुंदर, सर्वग्राह्य, संगमेश्वरीय ग्रंथ का निर्माण किया है। मैं अपने हृदय के अन्तःस्थल से उन्हें बधाई देती हूँ कि विशाल वर्ग को विराट की ओर ले जाने की शक्ति इन्हें प्राप्त हो। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ भावना रखती हूँ कि :
"सब कुछ चूक जाये पर विश्वास को मत चूकने दो पर्वत भले झुक जाये पर सर को मत झुकने दो। तमन्ना हैं जो भीतर में कुछ पाने की और लुटाने की तूफान रूक जाये पर कदम मत रूकने दो।।"
- डॉ. मंजु चोपड़ा
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