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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
श्री, २८ अपराजिता श्री, २६ सुघोषा श्री, ३० विमला श्री, ३१ सुस्वरा श्री, ३२ सरस्वती श्री आदि की सुपुत्रियों ने जो इन्हीं के नाम वाली थी, जिनके नाम के आगे "श्री" नहीं है। सभी श्राविकाओं ने भगवान् पार्श्व संघ में दीक्षा ग्रहण की थी।
एक बार भगवान् पार्श्वनाथ अरक्खुरी नगरी में पधारे। श्राविकाएं सूर्यश्री, आतपा श्री, अर्चिमाली श्री, प्रभंकरा श्री, पुत्रियाँ सूर्यप्रभा, आतपा, अर्चिमाली और प्रभंकरा, सुपुत्रियों ने भगवान् पार्श्वनाथ के चरणों में दीक्षा धारण की। भगवान् पार्श्वनाथ के समीप श्रावस्ती की दो ;पदमा, शिवा हस्तिनापुर की दो; सती, अंजु कांपिल्यपुर में दो, रोहिणी-नवमिका साकेतनगर की दो अचला, अप्सरा आदि श्राविकाओं ने दीक्षा धारण की। मथुरा में भ० पार्श्वनाथ पधारे। श्राविका चंद्रप्रभा श्री, ज्योत्सनाप्रभाश्री, अर्चिमाली श्री, प्रभंगा श्री की सुपुत्रियों ने प्रभु पार्श्वनाथ के उपदेशों को सुनकर दीक्षा अंगीकार की।
इसी प्रकार ज्ञाता सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कंध के १० वर्गों में २०१ देवियां अपने अपने पूर्वभव में अविवाहित श्राविकाएँ रही तथा जराजीर्ण अवस्था में भगवान् पार्श्वनाथ के उपदेश को सुनकर दीक्षा धारण की।
३.६.१६ वरुणा जी : जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में "पोतनपुर" नगर में अहँतोपासक राजा अरविंद के पुरोहित तत्वज्ञ विश्वभूति के पुत्र कमठ की पत्नी थी। वह सदाचारिणी थी, वह चाहती थी कि उसका पति कमठ भी सदाचारी बने। अतः उसने अपने देवर मरुभूति के समक्ष सच्चाई प्रकट करनी आवश्यक समझी।
३.६२० वसुन्धरा जी : जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में "पोतनपुर" नगर में राजा अरविंद के पुरोहित तत्वज्ञ विश्वभूति के द्वितीय पुत्र "मरुभूति" की पत्नी थी। मरूभूति की अनासक्ति तथा कमठ की लंपटता की वह शिकार बन चुकी थी।५३
३.६.२१ महारानी पद्मावती जी : महाराजा किरणवेग की रानी थी और उसके पुत्र का नाम किरणतेज था।
३.६.२२ कनकतिलका जी : पूर्व विदेह के सुकच्छ विजय पर तिलका नाम की नगरी के राजा विद्युतगति की रानी थी जो राजकुमार किरणवेग की माता थी।५५
३.६.२३ श्रीमती लक्ष्मीवती जी : जंबूद्वीप के पश्चिम महाविदेह के सुगंध विजय में शुभंकरा नगरी के राजा वज्रवीर्य की रानी थी जिसके पुत्र का नाम वजनाभ था |५६
३.६.२४ सुदर्शना जी : जंबूद्वीप के पूर्वविदेह में “पुरानपुर" नगर के राजा कुलिशबाहु की प्रिय रानी थी जिसने चौदह शुभ स्वप्न देखकर यथासमय चक्रवर्ती पुत्र “सुवर्णबाहु" को जन्म दिया। यही इसका महत् योगदान है।
३.६.२५ पद्मावती जी : विद्याधरेन्द्र रत्नपुर नरेश की पुत्री थी जिसकी माता का नाम रत्नावती था। दोनों कुलपति गालव मुनि के आश्रम में रहती थी। चक्रवर्ती सुवर्णबाहु अश्व के निमित्त से वहाँ पहुंचे। भवितव्यता के अनुसार राजमाता रत्नवती ने सुवर्णबाहु और पद्मावती का गंधर्व विवाह संपन्न करवाया।
३.६.२६ प्रभावती जी : कुशस्थल के महाराजा प्रसेनजित की पुत्री थी, जो पार्श्वकुमार की पत्नी थी। वह अत्यंत रूपवती एवं गुणवती थी और पार्श्वकुमार के प्रति पूर्णतः समर्पित थी। उसकी शीलसंपन्नता नारी जगत के लिए आदर्श हैं।
३.६.२७ माता वामादेवी जी : जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में "वाराणसी” नगरी के इक्ष्वाकुवंशीय महाराजा अश्वसेन की महारानी थी, जो नम्रता, पवित्रता, सुंदरता, आदि उत्तम गुणों से संपन्न थी। तीर्थंकर जन्म के सूचक चौदह शुभ स्वप्नों को देखकर उसने यथासमय सर्वलक्षण संपन्न पत्र पार्श्वकुमार को जन्म दिया। जब पुत्र गर्भ में था, तब अंधकार में महारानी ने पति के पार्श्व (बगल) में होकर जाते हुए सर्प को देखा अतः बालक का नाम पार्श्वकमार रखा ६० तीर्थंकर प्रभु पार्श्वनाथ की माता का असीम उपकार चिर स्मरणीय रहेगा।
३.६.२८ ग्वालिन जी : वणिक् सागरदत्त की पत्नी थी जो रूपवती, बुद्धिमती एवं पतिव्रता थी। उसने सागरदत्त के मन से स्त्री के प्रति हीन भाव को दूर किया।
३९६७२६ सुंदरी जी : नागपुरी के राजा सूरतेज के कपापात्र सेठ धनपति की पत्नी थी। वह सुंदर एवं सुशीला थी। बंधुदत्त उसका विनीत एवं गुणवान् पुत्र था।६२
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