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________________ 142 २.२७.१५ नंदयंती :- सोपारपुर नगर के सेठ नागदत्त की कन्या थी तथा पोतनपुर के नगर सेठ सागरपोत के पुत्र समुद्रदत्त की पत्नी थी। गर्भवती नंदयंती पर सासुजी ने कुलकलंकिनी का आरोप लगाकर जंगल में छोड़ दिया। भडौचनगर के राजा पद्म ने उसे बहन बनाकर रखा। नंदयंती ने याचकों के लिये सदाव्रत खोला। समुद्रदत्त नंदयंती को ढूंढता हुआ वहीं पहुंच गया। नंदयंती ने समुद्र दत्त को पहचान लिया। दोनों का मिलन हुआ। वे दोनों सकुशल अपने नगर में पहुँचे । केवली मुनि से पूर्वभव को सुनकर व जानकर नंदयंती ने श्राविका व्रतों को धारण किया । ४०४ २.२७.१६ कनकसुंदरी :- वह सेठ धनदत्तकुमार के पुत्र मदन कुमार की पत्नी थी। नगर की कामलता गणिका ने मदनकुमार के मन में कनकसुंदरी के प्रति नफरत पैदा कर दी। मदन कुमार कनकसुंदरी से विमुख हो गए। कनकसुंदरी ने अपनी हिम्मत एवं बुद्धिमानी के बल पर धीरे धीरे पति की भ्रांति को दूर किया और पति को सन्मार्ग पर आई | ४०५ २.२७.१७ अनंतमती :- सती अनंतमती बाल ब्रह्मचारिणी थी । विकारवर्धक दूषित वातावरण के बीच, प्रलोभनों और कामांध पुरूषों के अनेक आक्रमणों एवं आमंत्रणों के बावजूद भी जान हथेली पर लेकर अनंतमती ने अपनी ब्रह्मज्योति को अखण्ड बनाये रखा | ४०६ २. २७.१८ सती रोहिणी :पाटलीपुत्र के सेठ धनावह की पत्नी थी। राजा श्रीनंद रोहिणी पर मोहित हो गया। रोहिणी ने राजा को युक्ति से सन्मार्ग दिखाया तथा राजा ने उसे बहन बना लिया। राजा श्रीनंद के मन में रोहिणी के प्रति शंका पैदा हो गई। सती के शील के प्रभाव से सात दिन तक पाटलीपुत्र नगर में निरन्तर वर्षा हुई। संपूर्ण नगर जल मे डूब गया। सती नारी रोहिणी ने अंजली में जल लेकर पानी को कम करने का संकल्प किया। पानी कम हो गया। राजा श्रीनंद सती रोहिणी के शील धर्म से प्रभावित हुआ, उससे क्षमा याचना की तथा सती की सर्वत्र जय जयकार हुई |४०७ २.२७.१६ रति सुंदरी :- साकेतपुर के राजा नरकेशरी की पुत्री तथा नंदन देश के राजा चंद्र की रानी थी । कुरूदेश के राजा महेन्द्र ने रति सुंदरी को पाने के लिए युद्ध किया । राजा चंद्र युद्ध में मारे गये। रतिसुंदरी ने छः माह तक तप से तन को सुखाया, अंत में दो नेत्र निकाल दिये, तब राजा महेंद्र को बहुत पश्चाताप हुआ । ४०८ सन्दर्भ सूची (अध्याय- २) १. युवाचार्य श्री मधुकरमुनि जी, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र प ३१ २. अ स्त्रीणां शतानि शतशोः जनयंति पुत्रान् नान्याः सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता सर्वा दिशो दधति भानि सहस्त्ररश्मि, २. ब. सु० डोशी रतनलाल तीर्थंकर चरित्र भा० १ परिशिष्ट ३. सुश्रावक डोशी रतनलाल जी तीर्थंकर चरित्र भाग १ प्र. ४. ४. वही पृ १४.१५. वही प्र.१५.१६. वही १७. ५. ६. ७. ८. प्राच्येव दिग्जनयति स्फरदंशुजालम् (भक्तामर स्तोत्र श्लोक सं. २२) ६. १०. ११. पौराणिक / प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ वही पृ० १७. वही फ्र १६. वही पृ. २६.२८.. २६. पू. श्री अमोलक ऋषिजी म. समवाया. सूत्र पृ० ३०६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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