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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
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२.१ साहित्य के आलोक में पुराण :
पुराण से अभिप्राय है प्राचीन पुराण वे प्राचीन ग्रंथ हैं, जिनमें प्राचीन भारत का इतिहास छिपा पड़ा है ये संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं । पुराण महत्वपूर्ण ऐतिहासिक सामग्री प्रदान करते हैं। हिंदु पुराणों की संख्या १८ हैं, प्रत्येक पुराण आगे ५ भागों में विभक्त है। भिन्न-भिन्न पुराणों के काल, भाषा तथा विषय में काफी अंतर है। श्री एन. एन. घोष ने बताया है कि पुराण प्रथम शताब्दी से लेकर छठीं शताब्दी के बीच लिखे गये थे ।
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ॐ द्वितीय अध्याय
पौराणिक / प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ
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पुराणों में अनेक राजवंशों की सूचना दी गई है। अतः ये हमें उन राजवंशों के राजनैतिक, सामाजिक तथा धार्मिक जीवन की काफी जानकारी कराते हैं।
ये मौर्य वंश के इतिहास पर काफी प्रकाश डालते हैं।
ये आंध्र वंश के इतिहास पर काफी प्रकाश डालते हैं।
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इनमें गुप्त राजाओं की शासन पद्धति का परिचय मिलता है।
इनमें अभीर, यवन, शक, हूण, म्लेच्छ आदि राजवंशों का उल्लेख मिलता है।
इनसे प्राचीन नगरों तथा उनमें परस्पर दूरी का पता चलता है। इस प्रकार ये भौगोलिक ज्ञान भी कराते हैं।
ये हमें दर्शाते हैं कि तत्कालीन विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरू के घर जाया करते थे।
इनमें हिंदु देवी-देवताओं की स्तुति का भी वर्णन किया गया है। कुछ इतिहासकार पुराणों को कल्पित तथा मनगढ़ंत कहानियाँ ही मानते हैं। परन्तु आज यह बात सत्य सिद्ध हो चुकी है कि पुराण प्राचीन भारत के इतिहास का बहुमूल्य कोष हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार श्री एन. एन. घोष तो यहाँ तक कहते हैं,
"प्राचीन भारत के धार्मिक साहित्य में भी अन्य साहित्यों के मुकाबले पुराणों का वास्तविक इतिहास से कहीं अधिक संबंध हैं।"
२. २ जैन साहित्य में पुराण :
पुराण पुरातन महापुरूषों से उपदिष्ट मुक्तिमार्ग की ओर ले जाने वाले त्रेसठ शलाका पुरुषों के चरित्र से युक्त रचनाएं हैं। ये ऋषि प्रणीत होने से आर्ष, सत्यार्थ का निरुपक होने से सूक्त, धर्म का प्ररुपक होने से धर्मशास्त्र तथा इति + ह् + आस् यहाँ ऐसा हुआ यह बताने के कारण इतिहास कहलाते हैं। इनमें क्षेत्र, काल, तीर्थ, सत्पुरुष और उनकी चेष्टाओं का वर्णन रहता है। क्षेत्र रुप से ऊर्ध्व, मध्य और पाताल लोक का, काल रुप से भूत, भविष्यत् और वर्तमान का, तीर्थ रुप से सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र का तथा नीर्थसेवी सत्पुरुष (शलाकापुरुष) और उनके आचरण का वर्णन इनमें होता है। इनकी रचना ई.पू. की पांचवीं शती से प्रारंभ होती
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