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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास १.११ हस्तलिखित पांडुलिपियों में श्राविकाओं का अवदान : उन्नीसवीं शती की हस्तलिखित प्रतियों में विशेष रूप से सचित्र धन्ना-शालीभद्र की चौपाई में तयुगीन श्राविकाओं के वे चित्र हैं, जिनके हाव-भाव उनके मनोभावों को प्रकट करते हुए अत्यंत सजीव प्रतीत हो उठे हैं। धन्ना एवं शालीभद्र की पत्नियाँ उन्हें गृहस्थ में रहते हुए ही धर्म करने की सलाह देती हैं। एवं त्याग मार्ग की कठिनाईयों का वर्णन करते हुए उन्हें संयम मार्ग पर जाने से रोकती हैं। इतिहास प्रसिद्ध महासती अंजना सती चौपाई की हस्तलिखित प्रति में दान देती हई श्राविका तथा सश्राविकाएं अंजना सती ज्ञानी मुनिराज से अपने प्रश्नों का समाधान करती हुई दृष्टिगत होती हैं। इसी प्रकार उन्नीसवीं शती की एक हस्तलिखित प्रति में साधुओं से, हाथ जोड़ कर व्रतों को ग्रहण करती हुई श्राविका भी नज़र आती है ई. सन् की बीसवीं इक्कीसवीं शती में संपादक श्री अमरमुनि जी के सचित्र श्री अंतकृत् दशांग सूत्र में महारानी देवकी भी अपनी हृदयगत शंका का समाधान करने हेतु बाईसवें तीर्थकर श्री अरिष्टनेमि भगवान् के चरणों में पहुंची और समाधान को प्राप्त हुई। इसी सूत्र के अन्य स्थान पर राजमाता श्रीदेवी दीक्षा जुलूस में सम्मिलित हैं। तत्पश्चात् तीर्थंकर महावीर प्रभु से अपने पुत्र अतिमुक्तक कुमार को दीक्षा प्रदान करने हेतु विनम्र मद्रा में विनंती करती हैं। १.११ चित्र सं. (१) दीक्षा के लिए जाते हुए धन्ना को, समझाती हुई उनकी धर्म पत्नियाँ । धनवान (चित्र साभार : सचित्र धन्ना-शालीभद्र चौपाई. संवत् १८३७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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