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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
१.६
जैसलमेर की प्रशस्तियों पर अंकित श्राविकाएँ :
जैसलमेर स्थित तपपट्टिका की प्रशस्ति में एवं आर.वी. सोमानी की पुस्तक जैना इंस्क्रिपशंस ऑफ राजस्थान में निम्न उल्लेख प्राप्त होता है कि जैसलमेर के चोपड़ा परिवार में श्राविका पंछु की पुत्री गेली हुई थी। उसका विवाह शंखवाल गोत्रीय अशराज से हुआ था। गेली ने आबू एवं गिरनार आदि की यात्राएं निकाली थी। वि. संवत १५०५ में उसने एक तप-पट्टिका जैसलमेर में बनवाई थी। श्री मेरुसुंदरसूरि ने उसे लिखी। इस तप पट्टिका का विशाल शिलालेख ऊपर की तरफ से कुछ टूटा हुआ है। इसकी लम्बाई २ फुट १० इंच और चौड़ाई १ फुट साढ़े १० इंच है। इसमें बाईं ओर प्रथम २४ तीर्थंकरों के च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान इन चार कल्याणकों की तिथियाँ कार्तिक वदी से अश्विन सुदी तक महीने के हिसाब से खुदी हुई हैं। तत्पश्चात् महीने के क्रम से तीर्थंकरों के मोक्ष कल्याणक की तिथियाँ भी दी गई हैं। दाहिनी तरफ प्रथम छ: तपों के कोठे बने हुए हैं तथा इनके नियमादि खुदे हुए हैं। इसके नीचे वज मध्य और यव मध्य तपों के नकशे हैं। एक तरफ श्री महावीर तप का कोठा भी खुदा है। इन सबके नीचे दो अंशों में लेख हैं। प्रस्तुत तप पट्टिका जैसलमेर स्थित श्री संभवनाथजी के मंदिर की
जैसलमेर स्थित श्री शांतिनाथ मंदिर की एक प्रशस्ति में उल्लेख आता है कि संवत् १५८३ में श्राविका माणिकदे, कमलादे, पूनादे, आदि ने शत्रुजंय महातीर्थ की श्रीसंघ सहित यात्रा की थी। तथा अपने धन का सदुपयोग किया था। प्रस्तुत प्रशस्ति में यह उल्लेख आता है कि श्राविका गेली ने इसी समय में शत्रुजयादि तीर्थावतार की पाटी बनवाई। तोरणसहित नेमिनाथ भगवान् का परिकर बनवाया तथा समस्त कल्याणक आदि तप की पाटी बनवाई। संवत् १५३६ में गेली श्राविका ने अष्टापद महातीर्थ प्रासाद बनवाया। श्री कुंथुनाथ श्री शांतिनाथ मूलनायक सहित चौबीस तीर्थंकरों की अनेक प्रतिमाएं बनवाईं । उनकी प्रतिष्ठा आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरी श्री जिनसमुद्र सूरि द्वारा करवाई। नायकदे, अमरादे, कनकादे आदि ने परिवार सहित शत्रुजय, आबू, गिरनार आदि तीर्थों की यात्राएँ की। प्रस्तुत प्रशस्ति में उनके योगदानों की चर्चा की गई है।
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