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पूर्व पीठिका
साध्वी सरस्वती की घटना ई. पूर्व की प्रथम शती से संबंधित है, किंतु निम्न चित्र १५वीं - १६वीं शती का है
आचार्य कालक श्री (द्वितीय) का ससंघ उज्जयिनी नगरी में पदार्पण हुआ। उनकी बहन साध्वी सरस्वती परम विदुषी एवं रूपसंपन्ना थी। उज्जयिनी नरेश गर्दभिल्ल ने साध्वी सरस्वती के सौंदर्य से आकष्ट होकर उसका अपहरण कर लिया। आर्य कालक जी द्वारा गर्दभिल्ल राजा से अपहृत साध्वी सरस्वती को मुक्त कराने की घटना को चित्रकार ने चार भागों में विभाजित किया है। प्रस्तुत चित्र में दो भक्त श्राविकाएँ साध्वी सरस्वती से मनोयोगपूर्वक एवं नम्रतापूर्वक प्रवचन श्रवण कर रही हैं। चित्र बड़ा ही प्रभावशाली एवं मनोहर है। कालक कथा की अनेक प्रतियों में ऐसे चित्र मिलते हैं।
१.८ चित्र सं. (५)
१. कालकाचार्य कथा में साध्वी सरस्वती से उपदेश श्रवण करती हुई जैन श्राविकाएँ)
(१५वी. - १६वी. शती).
१.८ चित्र सं. (६)
२. जैन साधु से प्रवचन श्रवण करती हुई जैन श्राविकाएँ (१५वीं शती)।
चित्र साभार : १. साध्वी शिलापी जी, समय की परतों में प.३५ । २. वही प. ३५,
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