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प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन
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(प्रवचनसारोद्धार, गाथा- 1/875) नाइ विगिट्ठो य तवो छम्मासे परिमियं च आयामं। अण्णे वि य छम्मासे होइ विगिट्ठ तवोकम्मं ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 11) नाइ विकिट्ठो य तवो छम्मासे, परिमियं च आयाम । अवरेऽवि य छम्मासे होइ विगिळं तवोकम्म।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/876) वासं कोडी सहियं आयामं कटु आणुपुव्वीए। संलेहित्तु सरीरं भत्तपरिन्नं पवज्जेइ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 12) वासं कोडीसहियं आयामं कड आणुपवीए। गिरिकंदरं व गंतुं पाओवगमं पवज्जेइ ।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/877) उव्वत्त दार संथार कहग, वाईय अग्गदा-रम्भि। भत्ते पाण वियारे कहग दिसा जे समत्था य ।।
. (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 33) उव्वत्त दार संथार कहग, वाईय अग्गदारंमि। भत्ते पाण वियारे कहग दिसा जे समत्था य।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/629) काले विणए बहुमाणे उवहाणे तहा अनिन्हवणे। रंजण अत्थ तदुभए सुयनाणविराहणं वियडे।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 176) काले विणए बहुमाणोवहाणे तहा अनिण्हवणे। वंजण अत्थ तदुभए सुयनाणविराहणं वियडे ।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/267) निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उववूह थिरिकरणे वच्छल्ल पहावणे अट्ठ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 180) निस्संकिय निक्कंखिय निव्वितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य। उववूह-थिरिकरणे वच्छल्ल-पभावणे अट्ठ।।
-(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/268) पुरओ पक्खाऽऽसन्ने गंता चिट्ठण निसीयणाऽऽयमणे। आलोयण पऽिसुणणे पुव्वालवणे य आलोए।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 504) पुरओ पक्खाऽऽसन्नेगंताचिट्ठणनिसीयणायमणे। आलोयणऽपडिसुणणे पुव्वालवणे य आलोए।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/139)
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