________________
साध्वी डॉ. प्रतिभा
तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्मवलयाणं। मिच्छादसणसल्लं माया सल्लं नियाणं च ।।
(प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका, गाथा 217) तो उद्धरंति गारवरहिया मूलं पुणब्भवलयाणं। मिच्छादसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च।।
(महाप्रत्याख्यान, गाथा 19) न हु सुज्झई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणं। उद्धरियसव्वसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो।।।
(प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका, गाथा 218) न हु सुज्झई ससल्लो जह भणियं सासणे धुयरयाणं। उद्धरियसव्वसल्लो सिज्झइ जीवो धूयकिलेसो।।
(महाप्रत्याख्यान, गाथा 24) (10) सव्वं पाणारंभ पच्चक्खामि ति अलियवयणं च। सव्वंमदित्तादाणं मे हुणय परिग्गहं चेव।।
(प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका, गाथा 563) (10) सव्वं पाणारंभ पच्चक्खामी वि अलियवयणं। सव्वंमदिन्नादाणं अबंभ परिग्गहं चेव।।
(महाप्रत्याख्यान, गाथा 33)
निशीथभाष्य- आराधनापताका-निशीथभाष्य आगमिक व्याख्या-साहित्य में एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। यह छेदसूत्रों में महत्वपूर्ण निशीथ नामक ग्रन्थ पर लिखा गया भाष्य है। कालक्रम की अपेक्षा से निशीथभाष्य हमारे समालोच्य ग्रन्थ आराधना-पताका से कुछ परवर्ती है। प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका की कुछ गाथाएं इस निशीथभाष्य में भी मिलती हैं। तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से दोनों ग्रन्थों की गाथाओं को हम नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं(1) किं पुण अणगार सहायगेण अन्नोन्नसंगहबलेण। परलोइये न सकका साहेउं अप्पणो अलैं।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 90) किं पुण अणगार सहायएण अण्णोण्ण संगहबलेण। परलोइये ण सक्कइ साहेउं उत्तिमो अट्ठो।।।
(निशीथसूत्र-भाष्य, गाथा 3913) (2) धीर पुरिसपन्नते सप्पुरिसनिसेविए अणसणम्मि। धन्नासिलायलगया निरावयक्खा निव्वजति।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 88) धीर पुरिसपण्णत्ते सप्पुरिसणिसेवितं परमरम्मे । धण्णा सिलातलगता णिरावयक्खा णिव्वजंति।।
(निशीथसूत्र-भाष्य, गाथा 3911)
e
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org