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आत्मीय आशीष
जैन साहित्य यथार्थ में जहाँ अगाध अपार महासागर के सदृश्य गहन व गम्भीर है, वहीं अनन्त आकाश के समान असीम है। यह साहित्य मूलतः संस्कृत और प्राकृत भाषा में निबद्ध है।जैन वाड्.मयका प्रचुर प्राचीन साहित्य है।
जैन-दर्शन में समाधिमरण का उल्लेख मिलता है । समाधिमरण जीवन की अन्तिम साधना है, जो साधक
समाधिमरण या संलेखना में दृढ़ रहता है उसका सन्तत्व महान कहलाता है।
श्रमण संघ की महासाध्वी एवं गुरु पुष्कर तथा देवेन्द्र की बगिया को महकाने वाली और गुरुवर्या श्री कुसुमवतीजी म.सा. की प्रधान सुशिष्या उपप्रवर्तिनी साध्वी श्री चारित्रप्रभा जी म. सा. की सुशिष्या शासन ज्योति प्रखर वक्त्री डॉ. प्रतिभा जी म. सा. ने "समाधिमरण" पर शोध-प्रबन्ध लिखा है। उन्होंने ऐसे गहन विषय को अपनी गहन प्रज्ञा से महान ग्रन्थ का रूप देकर श्रमण संघका गौरव बढ़ाया है।
मुझे अतिशय प्रसन्नता है कि मेरी प्रज्ञामूर्ति योग्य शिष्या साध्वी डॉ.प्रतिभाने "प्राचीन आचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा में" शोध शैली में आलेखन प्रस्तुत किया। साध्वी श्री का यह शोध प्रधान महानिबंध पी.एच.डी. जैसी उपाधि के लिए स्वीकृत हुआ और वे डॉ. की विशिष्ट एवं वरिष्ठ उपाधि से विभूषित हुई। यह उपाधि वस्तुतः उपाधि रूप नहीं, अपितु समाधि स्वरूप है क्योंकि रत्नत्रय में ज्ञान साधना को समाधि के रूप में स्वीकार किया गया है साध्वी श्री ने यह शोध प्रधान लेखन कर प्रकारान्तर से ज्ञान समाधि का अनुभव किया है और उसका अध्ययन एवं अध्यवसाय सर्वथासफल हुआ।
आज के दिग्भ्रमित जनजीवन को इस शोध-ग्रन्थ से नई दिशा मिलेगी और साधना-पथ पर बढ़ने की निश्चितहीसीख मिल सकेगी। ऐसा मेरा विश्वास है।
सार्थक लेखनी की दिशा में बढ़ रही विदुषी साध्वी प्रतिभा जी को मेरा आन्तरिक आशिर्वाद साथ ही महासाध्वी श्री प्रतिभा के सुदीर्घ स्वस्थ जीवन एवं समुज्जवल भविष्य की शुभमंगलकामनाएँ....
प्रवास-भीम 30 अगस्त 2010
साध्वी चारित्र प्रभा गुरु पुष्कर साधना केन्द्र सैक्टर 3, हिरण नगरी उदयपुर (राज.)
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