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साध्वी डॉ. प्रतिभा
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न हु सुज्झई ससल्लो जह मणियं सासणे धूयरयाणं। उद्धरियसव्वसल्लो सुज्झइ जीवो धुयकिलेसो।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 218)
संस्तारकप्रकीर्णक-आराधनापताका
समाधिमरण सम्बन्धी प्राचीन ग्रन्थों में संस्तारक-प्रकीर्णक भी एक प्रमुख ग्रन्थ रहा है। श्वेताम्बर-परम्परा में मरणसमाधि नामक प्रकीर्णक में जिन ग्रन्थों का समावेश किया गया है, उनमें भी यह एक ग्रन्थ है। विषय-साम्य के साथ-साथ इस ग्रन्थ की भी कुछ गाथाएं आराधना-पताका में समान रूप से पाई जाती हैं। तुलनात्मक अध्ययन के लिए हम उन्हें नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं- . (1) धीर पुरिसपण्णत्तं सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं । धण्णा सिलायलगया साहंती उत्तमं अट्ठ।।
(संथारग-पइण्णयं, गाथा 92) (2) धीर पुरिसपन्नत्ते सप्पुरिसनिसेविए अणसणम्मि। धन्नासिलायलगया निरावयक्खा निवज्जंति।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका. गाथा 88) चंद्रवेध्यक-आराधना-पताका
चंद्रवेध्यक एक प्राचीन प्रकीर्णक है। इसका नाम नन्दीसूत्र की अंगबाह्य सूची में पाया जाता है। इसमें अंतिम आराधना का संक्षिप्त निरुपण मिलता है। इसकी भी एक गाथा हमें आराधना-पताका में मिलती है - (1) जे मे जाणंति जिणा अवराहे नाण-दसण-चरित्ते। ते सव्वे आलोए, उव्वट्ठिओ सव्वभावेणं ।।
__(चंद्रवेध्यक, गाथा 132) जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसुजेसु ठाणेसु। ते हं आलोएज्जा, उवढिओ सव्व भावेणं।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 207) महाप्रत्याख्यान- आराधना-पताका- महाप्रत्याख्यान समाधिमरण सम्बन्धी ग्रन्थों में एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जा सकता है। हमारी दृष्टि में यह ग्रन्थ भी प्राचीनाचार्यकृत आराधना-पताका से पूर्ववर्ती है, क्योंकि इसका नाम नन्दीसूत्र में अंगबाह्य ग्रन्थों की सूची में मिलता है। इसमें भी अनेक गाथाएं आराधना-पताका से ली गई है। तुलनात्मक अध्ययन के लिए हम इन गाथाओं को नीचे प्रस्तुत कर रहे हैं(1) धीरपुरिसपन्नते सप्पूरिसनिसेविए अणसणम्मि | धन्नासिलाय लगया निरावयक्खा निवज्जति ।।
(प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका, गाथा 88 (1) धीरपुरिसपण्णत्तं सप्पुरिसणिसेवियं परमघोरं । धन्ना सिलायलगया साहिति अप्पणो अलैं ।।
(महाप्रत्याख्यान, गाथा 84)
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