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साध्वी डॉ. प्रतिभा
क्षमा करता हूँ। उसमें भी एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक पाँच प्रकार के जीव होते हैं, पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय पांच प्रकार के हैं तथा वे सूक्ष्म व बादर भी हैं, उनमें से सूक्ष्म एकेन्द्रियों से पर्याप्त अपर्याप्त भेद के प्रति मेरे द्वारा जो भी दुष्ट कर्म किए गए हों, उनकी भी मै तीन योगों से गर्दा करता हूँ। उसके उपरान्त मैं बादर-एकेन्द्रियों को क्षमा करता हूँ। भवभ्रमण करते हुए मेरे द्वारा मिट्टी, खड़ी, तुयरि, ऊस, अरणेटक , गेरू, लवण, प्रवाल, हेमान्तिका, धातु रत्न, मणि, स्फटिक, मन: शिल, काला नमक, सेंधव, हिंगुल, पाषाण-प्रमुख पृथ्वीकाय आदि जीवों की विराधना हुई हो, तो मैं उनसे क्षमा याचना करता हूँ। मेरे द्वारा हिम, ओला, ओस, धनोदधि अपकाय के जीवों का वध हुआ
तो मैं क्षमा याचना करता हूँ। मेरे द्वारा उल्का. विद्यत-अंगार, ज्वालादि तेजस्काय के जीवों की विराधना हुई हो, तो मैं क्षमा याचना करता हूँ। मेरे द्वारा सघन वायु, मण्डलिक वायु, विस्तीर्ण वायु, शुद्ध वायु, चक्रवात आदि वायुकाय के जीवों को त्रास पहुंचाया गया हो, तो मैं क्षमा याचना करता
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वनस्पति-जीव दो प्रकार के कहे गए हैं- साधारण व प्रत्येक, जिनके एक जीव के क्रमशः एक व अनन्त शरीर होते हैं। अनन्तकाय वाले वनस्पति-जीव साधारण वनस्पति-जीव होते हैं। मली, शकरी, वल्ल, अदरक व सभी प्रकार की कंद-जाति, हल्दी, सरणकंद व वजकंद, गाजर, किसलय पत्रादि, गिरिकर्णी, लवणक, वृक्ष-छाल, अमरबेल तथा ऐसे ही अन्य भी साधारण वनस्पतिकाय के जीव जिनका मेरे द्वारा घात किया गया हो, उन सबसे मैं क्षमा याचना करत अब प्रत्येक वनस्पति-काय के जीवों से क्षमा याचना करता हुआ क्षपक कहता है- धव, खैर, पलाश, नीम, जामुन, सहकार आदि अनेक प्रकार के तरुओं के प्रति मेरे द्वारा बुरा किया गया हो, तो मैं क्षमा-याचना करता हूँ। शंख, सीप, कपर्द, गण्डोल, अलसिया, जोंक आदि बेइन्द्रिय-जीव, जो मेरे द्वारा पीड़ित किए गए, उन सबसे मन, वचन, काया से क्षमा याचना करता हूँ। मेरे द्वारा पिपीलिका, चींटी, कुन्थु, खटमल, नँ, मकड़ी ,कानखजूरा, गोगिड़ा, गुबरेला आदि तेइन्द्रिय-जीवों का वध हुआ हो, तो मैं उन सबसे क्षमा याचना करता हूँ। मेरे द्वारा बिच्छू मच्छर, मक्खी, डांस, भ्रमर, भ्रामरी, पतंगा, जुगनू, कंसारी आदि किन्हीं भी चतुरिन्द्रिय-जीवों का वध हुआ हो, तो मैं उन सबसे क्षमा याचना करता हूँ।
मेरे द्वारा मत्स्य, कच्छप, ग्राह, सुसुमार, जलमानुषादि जो भी जलचर जीव हनन किए गए हों, तो मैं उनसे भी क्षमा-याचना करता हूँ। मेरे द्वारा हरिण, हरि, बाघ, चीता, संबर, गोरखर, शकर, सियार, शरभ, वृक (भेड़िया), रीछ, रोजड़ा या नीलगाय, ऊँट, घोड़ा, खच्चर, गधा, गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़, श्वान आदि प्रमुख जिन भी थलचर जीवों की विराधना की गई हो, तो मैं क्षमा याचना करता हूँ।
मेरे द्वारा भारंड, मोर, कोयल, बगुला, हंस, शुक, सारस, कौशिक, कौआ, चक्रवाक, चातक आदि खेचर-जीवों को कष्ट पहुँचाए गए हों, तो मैं उन सभी से क्षमा याचना करता हूँ। कृष्ण व गौर सर्प, कर्कोटक, पद्म व नागिनी, अजगर आदि प्रमुख जो मेरे द्वारा संतप्त हुए हों, मैं उन सभी से क्षमा याचना करता हूँ।
नेवला, कोल, सांडा, गिलहरी, छिपकली, गिरगिट आदि भुजपरिसर्प, जो मेरे द्वारा हताहत हुए हों, मैं उनसे भी क्षमा याचना करता हूँ। मनुष्य समूर्छिम व गर्भज के भेद से दो प्रकार के होते हैं। मनुष्य-क्षेत्र में रहने वाले, संख्यासंख्य, उच्चार, श्लेष्म, प्रस्रवन, नमनपूति, रुधिर, विकृत कलेवरों आदि अशुचि स्थानों में पैदा होने वाले, अंगुल के असंख्यातवें भाग के समान सूक्ष्म अन्तमुहूर्त आयु
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