________________
96
तुलनात्मक अध्ययन में मैंने यह पाया है कि प्राचीनाचार्यकृत इस आराधना-पताका की अनेक गाथाएँ आतुरप्रत्याख्यान, महाप्रत्याख्यान, चन्द्रवेध्यक, आवश्यकनिर्युक्ति, ओघनिर्युक्ति, निशीथभाष्य आदि पूर्ववर्ती एवं समकालीन ग्रन्थों में तथा प्रवचनसारोद्धार, संवेगरंगशाला तथा वीरभद्रकृत आराधना-पताका में भी समान रूप से पाई जाती है, किन्तु हमने इस तुलना में यह पाया कि प्राचीनाचार्यकृत आराधना - पताका की सर्वाधिक गाथाएं भगवती - आराधना में यथावत् मिलती हैं। इससे ऐसा लगता है कि भगवती आराधना के शिवार्य प्राचीनाचार्यकृत आराधना-पताका से विशेष रूप से परिचित थे। नीचे, हम दोनों ग्रन्थों की गाथाओं का तुलनात्मक - विवेचन प्रस्तुत कर रहे हैं
1
2
3
4
खवयस्स इच्छसंपायणेण, देहपरिकम्म करणेण । अन्नेहिं वा उवाएहिं सो, समाहिं कुणइ तस्स ।।
खवयस्स इच्छसंपादणेण, देहपडिकम्म करणेण । अण्णेहिं वा उवाएहिं, सो हु समाहिं कुणइ तस्स ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 60 )
जह - बालो जंपतो, कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोएज्जा माया - मयविप्पमुक्को य ।।
संखिता वि य पव ( ? मु) हे जह वड्डइ वित्थरेण पवहंती । उदहिं तेण वरनई तहसीलगुणेहिं वड्डाहि ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 117 ) संखिता वि य पवहे जह वच्चई वित्थरेण वड्डती । उदधिं तेण वरणदी तह सीलगुणेहिं वुड्डाहिं । ।
जह बालो जंपतो, कज्जमकज्जं व उज्जुयं भणइ । तह आलाचेदव्वं मायामोसं च मोत्तूण ।।
साध्वी डॉ. प्रतिभा
सज्झायं कुव्वंतो पंचिंदिय संवुडो तिगुत्तो य । भवइ य एगग्गमणो विण्णएण समाहिओ भिक्खू ।।
Jain Education International
( भगवती - आराधना, गाथा 449)
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका गाथा, 172 )
सज्झायं कुव्वंतो पंचेंदिय संवुडो तिगुत्तो य । हवदि य एयग्गमणो विणएण समाहिदो भिक्खू ।।
( भगवती - आराधना, गाथा, 287 )
( भगवती - आराधना, गाथा, 549)
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा, 591)
( भगवती - आराधना, गाथा, 6)
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org