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________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन 93 उल्लेख है और उसमें भी शरीर-संलेखना को बाह्य और कषाय-संलेखना को आभ्यन्तर-संलेखना कहा गया है। इस प्रकार, आराधना के दो भेदों की चर्चा दोनों रूपों में समान रूप से मिलती है, किन्तु प्रारम्भ की गाथाओं में दोनों के स्वरूपों में भेद है। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि भगवती-आराधना में ज्ञान और दर्शन का सार चारित्र कहा गया है और चारित्र का सार निर्वाण की प्राप्ति बताया गया है। यह बात श्वेताम्बर-परम्परा में आवश्यकनियुक्ति में भी यथावत मिलती है। इसी क्रम में भगवती-आराधना में आराधना की टीका में भी आराधना के तीन और चार भेद कहे गए हैं, किन्तु संख्या सामने होने पर भी यहाँ दोनों में अन्तर है। आराधना-पताका में तीन भेद ष्ट, मध्यम और जघन्य के रूप में किए गए हैं, जबकि भगवती-आराधना में ऐसी कोई चर्चा इस प्रसंग में नहीं की गई है। इस चर्चा के पश्चात् भगवती-आराधना' में मरण के बालमरण, बालपण्डितमरण और पण्डितमरण-ऐसे तीन भेदों के प्रसंगान्तर से मरण के 17 भेदों की चर्चा की गई है। यद्यपि आराधना-पताका में इस प्रकार की कोई चर्चा नहीं की गई है, किन्तु श्वेताम्बर–परम्परा के उत्तराध्ययनसूत्र के पांचवें अध्याय में बालमरण, बालपण्डितमरण और पण्डितमरण-ऐसे तीन भेदों की चर्चा मिलती है, साथ ही समवायांगसूत्र में भगवती-आराधना के समान ही मरण के 17 भेदों की चर्चा की गई है। इसके अतिरिक्त, भगवती-आराधना में पण्डितमरण के तीन भेदोंभक्तपरिज्ञामरण, इंगिनीमरण और पादपोगमनमरण की चर्चा है। यह चर्चा श्वेताम्बर-परम्परा आचारांगसूत्र के आठवें विमोक्ष नामक अध्ययन में भी मिलती है और श्वेताम्बर-परम्परा. के अनेक परवर्ती ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख हुआ है। यद्यपि आराधना-पताका के उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य- इस प्रकार की तीन संलेखनाओं की स्पष्ट चर्चा भगवती-आराधना में न होते हुए भी भगवती-आराधना में काल की अपेक्षा से आराधना-पताका के समान ही संलेखना का उत्कृष्ट काल 12 वर्ष माना गया है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि जो उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य काल की चर्चा आराधना-पताका में है, वैसी ही चर्चा भगवती-आराधना की गाथा 254, 255, 256 में भी है। 'एवं सरीरसल्लेहणाविहिं बहुविहा व फासेंतो। अज्झवसाण सिवुद्धिं खणमवि खवओ न मुचेज्ज।। भगवतीआराधना-- 258. अज्झवसाणविासुद्धि कसायकलुसीकदस्स णस्थित्ति।। अजझवसाणसिवुद्धि कसायसल्लेहणा भणिदा।। भगवतीआराधना-261. मरणाणि सत्तरस दोसिदाणि तित्थंकरेहि जिणवयणे। तत्थ वि य पंच इह संगहेण मरणाणि वोच्छामि।। भगवतीआराधना-25. * समवायांग, समवाय - 17 गाथा 'उत्तराध्ययन -5 गाथा 6भगवती-आराधना - पृ. - 28 गाथा 'आचारांग सूत्र प्रथम श्रुतस्कंध - अध्ययन-8 - विमोक्ष. 1- उक्कस्सएण भत्तपइण्णाकालो जिणेहिं णिदिट्ठो। कालम्मि संपहुते बारसवरिसाणि पुण्णाणि।। भगवतीआराधना- 254. 2- जोगेहिं विचित्तेहिं दु खवेइ, संवच्छराणि चत्तारि। वियडी णिज्जूहित्ता चत्तारि पुणो वि सोसेदि ।। वही गाथा- 255 3- आयंबिलणिब्वियडीहिं दोणि आयबिलेख एक्कं च। अद्ध णादिविगठेहिं अदो अद्धं विगठेहिं।। वही गाथा- 256. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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