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प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन
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(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/641) कंदप्पे कुक्कुइए दवसीलत्ते य हासकरणे य। परविम्हयजणणे वि य कंदप्पो पंचहा होइ ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 715) कंदप्पे कुक्कुइए दोसीलत्ते य हासकरणे य। परविम्हयजणणेवि य कंदप्पोऽणेगहा तह य।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/642) कोउय भूईकम्मे पसिणेहिं तह य पसिणपसिणेहिं। तह य निमित्तेणं चिय पंचवियप्पा भवे सा य ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 717) कोउय भूईकम्मे पसिणेहिं तह य पसिण पसिणेहिं। तह य निमित्तेणं चिय पंचवियप्पा भवे सा य।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/644) उम्मग्गदेसणा मग्गदूसणं मग्गविपडिवत्ती य। मोहो य मोहजणणं एवं सा हवइ पंचविहा।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 719) उम्मग्गदेसणा मग्गदूसणं मग्गविपऽिवत्ती य। मोहो ये मोहजणणं एवं सा हवइ पंचविहा।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/646) इदरियासमिए सया जए उवेह अँजिज्ज व पाण–भोयणं । आयाण-निक्खेव दुगुंछ संजए समाहिए संजयए मणोवई ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 746) इदरियासमिए सयाजए उवेह भुंजेज्ज व पाण-भोयणं। आयाणनिक्खेवदुगुंछ संजए समाहिए संजयए मणोवइ ।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/636) अहस्ससच्चे अणुवीइभासए जे कोह लोह भयमेव वज्जए। सदीहरायं समुपहिया सिया मुणी हु मोसं परिवज्जए सया।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 747) अहस्ससच्चे अणुवीइभासए जे कोह लोह भयमेव वज्जए। सदीहरायं समुपेहिया सिया मुणी हु मोसंपरिवज्जए सिया।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/637) सयमेव उ उग्गहजायणे घडे मइमं निसम्म सइभिक्खु उग्गह। अणुन्नविय भुंजिय पाण-भोपणं जाइत्ता साहम्मियाण उग्गहं।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 748) सयमेव उ उग्गहजायणे घडे मइमं निसम्मा सइ भिक्खु उग्गह। अणुन्नविय भुंजीयपाण-भोयणं जाइत्ता साहम्मियाण उग्गहं।।
(प्रवचनसारोद्धार,गाथा- 1/638)
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