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________________ सम्यक् - दर्शन बौद्ध दर्शन में सम्यग्दर्शन का स्वरूप बौद्ध - परम्परा में सम्यग्दर्शन के समानार्थी सम्यग्दृष्टि, सम्यग्समाधि, श्रद्धा एवं चित्त शब्द मिलते हैं। बुद्ध ने अपने त्रिविध साधना - मार्ग में कहीं शील, समाधि और प्रज्ञा, कहीं शील, चित्त और प्रज्ञा और कहीं शील, श्रद्धा और प्रज्ञा का विवेचन किया है। बौद्ध-परम्परा में समाधि, चित्त और श्रद्धा का प्रयोग सामान्यतया एक ही अर्थ में हुआ है। वस्तुतः, श्रद्धा चित्त - विकल्प की शून्यता की ओर ही ले जाती है, श्रद्धा के उत्पन्न हो जाने पर विकल्प समाप्त हो जाते हैं, उसी प्रकार समाधि की अवस्था में भी चित्त-विकल्पों की शून्यता होती है, अतः दोनों को एक ही माना सकता है। श्रद्धा और समाधि- दोनों ही चित्त की अवस्थाएँ हैं, अतः उनके स्थान पर चित्त का प्रयोग भी किया गया है। क्योंकि चित्त की एकाग्रता ही समाधि है और चित्त की भावपूर्ण अवस्था ही श्रद्धा है, अतः चित्त, समाधि और श्रद्धा एक ही अर्थ की अभिव्यक्ति करते हैं, यद्यपि अपेक्षा-भेद से इनके अर्थों में भिन्नता भी है। श्रद्धा बुद्ध, संघ और धर्म के प्रति अनन्य निष्ठा है, तो समाधि चित्त की शान्त अवस्था है। 89 बौद्ध-प - परम्परा में सम्यग्दर्शन का अर्थ -साम्य बहुत कुछ सम्यग्दृष्टि से है। जि प्रकार जैन-दर्शन में सम्यग्दर्शन तत्त्व - श्रद्धा है, उसी प्रकार बौद्ध दर्शन में सम्यग्दृष्टि चार आर्य सत्यों के प्रति श्रद्धा है। जिस प्रकार जैन-दर्शन में सम्यग्दर्शन का अर्थ देव, गुरु और धर्म के प्रति निष्ठा माना गया है, उसी प्रकार बौद्ध दर्शन में श्रद्धा का अर्थ बुद्ध, संघ और धर्म के प्रति निष्ठा है । जिस प्रकार जैन-दर्शन में देव के रूप में अरहंत को साधना का आदर्श माना गया है, उसी प्रकार बौद्ध-परम्परा में साधना के आदर्श के रूप में बुद्ध और बुद्धत्व मान्य हैं । साधना - मार्ग के रूप में दोनों ही धर्म के प्रति निष्ठा को आवश्यक मानते हैं । जहाँ तक साधना के पथ-प्रदर्शक का प्रश्न है, जैन- परम्परा में पथ-प्रदर्शक के रूप में गुरु को स्वीकार किया गया है, जबकि बौद्ध परम्परा उसके स्थान पर संघ को स्वीकार करती है। जैन-दर्शन में सम्यग्दर्शन के दृष्टिकोणपरक और श्रद्धापरक - ऐसे दो अर्थ स्वीकृत रहे हैं, जबकि बौद्ध-परम्परा में श्रद्धा और सम्यग्दृष्टि- ये दो भिन्न तथ्य माने गए हैं, फिर भी दोनों समवेत रूप में जैन-दर्शन के सम्यग्दर्शन के अर्थ की अवधारणा को बौद्ध-दर्शन में भी प्रस्तुत कर देते हैं। बौद्ध-परम्परा में सम्यग्दृष्टि का अर्थ दुःख, दुःख के कारण, दुःख - निवृत्ति का मार्ग और दुःख - विमुक्ति- इन चार आर्य सत्यों की स्वीकृति है । जिस प्रकार जैन-दर्शन में वह जीवादि नौ तत्त्वों का श्रद्धान है, उसी प्रकार बौद्ध-दर्शन में वह चार आर्य सत्यों का श्रद्धान है । यदि हम सम्यग्दर्शन को तत्त्वदृष्टि या तत्त्व- श्रद्धान से भिन्न श्रद्धापरक अर्थ में लेते हैं, तो बौद्ध परम्परा में उसकी तुलना श्रद्धा से की जा सकती है। बौद्ध-परम्परा में श्रद्धा पाँच इन्द्रियों में प्रथम इन्द्रिय, पाँच बलों में अन्तिम बल और स्रोतापन्न अवस्था का प्रथम अंग मानी गई है। बौद्ध परम्परा में श्रद्धा का अर्थ चित्त की प्रसादमयी अवस्था है । जब श्रद्धा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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