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________________ 80 भारतीय आचार- दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन अध्ययन करने से जो तत्त्वबोध एवं तत्त्व - श्रद्धा उत्पन्न होती है, वह अभिगमरुचिसम्यक्त्व है। 7. विस्ताररुचि - वस्तुतत्त्व (षद्रव्यों) के अनेक पक्षों का विभिन्न अपेक्षाओं (दृष्टिकोणों) एवं प्रमाणों से अवबोध कर उनकी यथार्थता पर श्रद्धा करना विस्तार - रुचि - सम्यक्त्व है । 8. क्रियारुचि - प्रारम्भिक रूप में साधक जीवन की विभिन्न क्रियाओं के आचरण रुचि हो और उस साधनात्मक अनुष्ठान के फलस्वरूप यथार्थता का बोध हो, यह क्रियारुचि- सम्यक्त्व है। 9. संक्षेपरुचि - जो वस्तुतत्त्व का यथार्थ स्वरूप नहीं जानता है और जो अर्हत्प्रवचन (ज्ञान) में प्रवीण भी नहीं है, लेकिन जिसने अयथार्थ ( मिथ्या-दृष्टिकोण) को अंगीकृत भी नहीं किया, जिसमें यथार्थ ज्ञान की अल्पता होते हुए भी मिथ्या (असत्य) धारणा नहीं है, वह संक्षेपरुचि सम्यक्त्व है। Q धर्मरुचि - तीर्थंकर प्रणीत सत् के स्वरूप, आगम-साहित्य एवं नैतिक-नियमों पर आस्तिक्य-भाव या श्रद्धा रखना, उन्हें यथार्थ मानना धर्मरुचि - सम्यक्त्व है | 24 सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण - अपेक्षाभेद से सम्यक्त्व का त्रिविध वर्गीकरण भी किया गया है, जैसे कारक, रोचक और दीपक 125 1. कारक - सम्यक्त्व - जिस यथार्थ दृष्टिकोण (सम्यक्त्व) के होने पर व्यक्ति सदाचरण या सम्यक् चारित्र की साधना में अग्रसर होता है, वह कारक- सम्यक्त्व है । कारक - सम्यक्त्व ऐसा यथार्थ दृष्टिकोण है, जिसमें व्यक्ति आदर्श की उपलब्धि के हेतु सक्रिय एवं प्रयासशील बन जाता है। नैतिक दृष्टि से कहें, तो कारक - सम्यक्त्व शुभाशुभ विवेक की वह अवस्था है, जिसमें व्यक्ति जिस शुभ का निश्चय करता है, उसका आचरण भी करता है। यहाँ ज्ञान और क्रिया में अभेद होता है। सुकरात का यह वचन कि 'ज्ञान ही सद्गुण है', इस अवस्था में लागू होता है। 2. रोचक - सम्यक्त्व - रोचक - सम्यक्त्व सत्य-बोध की अवस्था है, जिसमें व्यक्ति शुभ को शुभ और अशुभ को अशुभ के रूप में जानता है और शुभ-प्राप्ति की इच्छा भी करता है, लेकिन उसके लिए प्रयास नहीं करता। सत्यासत्य विवेक होने पर भी सत्य का आचरण नहीं कर पाना रोचक सम्यक्त्व है। जैसे कोई रोगी अपनी रुग्णावस्था एवं उसके कारण को जानता है, रोग की औषधि भी जानता है और रोग से मुक्त होना भी चाहता है, लेकिन औषधि ग्रहण नहीं करता, वैसे ही रोचक - सम्यक्त्व वाला व्यक्ति संसार के दुःखमय यथार्थ स्वरूप को जानता है, उससे मुक्त होना भी चाहता है, उसे मोक्ष-मार्ग का भी ज्ञान होता है, फिर भी वह सम्यक् चारित्र का पालन ( चारित्रमोहनीय कर्म के उदय के कारण) - Jain Education International - taling - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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