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________________ 542 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन कार्य करता है। शासन की इच्छा या आधिपत्य की भावना इसके प्रमुख तत्त्व हैं। इनके कारण भी सामाजिक-जीवन में विषमता उत्पन्न होती है। शासक और शासित, अथवा जातिभेद एवं रंगभेद आदि की श्रेष्ठता के मूल में यही कारण है। वर्तमान युग में बड़े राष्ट्रों में जो अपने प्रभावक-क्षेत्र बनाने की प्रवृत्ति है, उसके मूल में भी अपने राष्ट्रीय अहं की पुष्टि का प्रयत्न है। स्वतंत्रता के अपहार का प्रश्न इसी स्थिति में उठता है । जब व्यक्ति में आधिपत्य की वृत्ति या शासन की भावना होती है, तो वह दूसरे के अधिकारों का हनन करता है। जैन आचार-दर्शन अहं के प्रत्यय के विगलन के द्वारा सामाजिक-जीवन में परतंत्रता को समाप्त करता है। दूसरी ओर, जैन-दर्शन का अहिंसा-सिद्धान्त भी सभी प्राणियों के समान अधिकार को स्वीकार करता है। अधिकारों का हनन एक प्रकार की हिंसा है, अतः अहिंसा का सिद्धान्त स्वतंत्रता के साथ जुड़ा हुआ है। जैन एवं बौद्धआचारदर्शन इसी अहिंसा-सिद्धान्त के आधार पर स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं। यदिसामाजिक-सम्बन्धों में उत्पन्न होने वाली विषमता के कारणों का विश्लेषण किया जाए, तो ज्ञात होगा कि उसके मूल में राग ही है। यही राग जब जीवन पर केन्द्रित होता है, तो अपने और पराए के भेद उत्पन्न कर सामाजिक-सम्बन्धों को अशुद्ध बनाता है। दूसरी ओर, यही राग जब स्व-केन्द्रित होता है, तो अहं या मान का प्रत्यय उत्पन्न करता है, जिसके कारण सामाजिक-जीवन में ऊँच-नीच भावनाओं का निर्माण होता है। इस प्रकार, राग का तत्त्वही मान के रूप में एक दूसरी दिशा ग्रहण कर लेता है, जिससे सामाजिकविषमता उत्पन्न होती है। राग की वृत्ति ही संग्रह (लोभ) और कपट की भावनाओं को विकसित करती है। इस प्रकार, सामाजिक-विषमता के उत्पन्न होने के चार मूल-भूत कारण हैं - 1. संग्रह, 2. आवेश, 3. गर्व (बड़ा मानना)और 4. माया (छिपाना), जिन्हें जैन-परम्परा में चार कषाय कहते हैं। यही चारों कारण अलग-अलग रूप में सामाजिकजीवन में विषमता, संघर्ष एवं अशान्ति के कारण बनते हैं। 1. संग्रह की मनोवृत्ति के कारण शोषण, अप्रामाणिकता, निरपेक्ष व्यवहार, क्रूर-व्यवहार, विश्वासघात आदि विकसित होते हैं। 2. आवेश की मनोवृत्ति के कारण संघर्ष, युद्ध, आक्रमण एवं हत्याएँ आदि होती हैं। 3. वर्ग की मनोवृत्ति के कारण घृणा, अमैत्रीपूर्ण व्यवहार और क्रूर व्यवहार होता है। इसी प्रकार, माया की मनोवृत्ति के कारण अविश्वास एवं अमैत्रीपूर्ण व्यवहार उत्पन्न होता है। 11 जैन-दर्शन इन्हीं कषायों के निरोध को नैतिक-साधना का आधार बनाता है, अतः यह कहना उचित ही होगा कि जैन-दर्शन साधना-मार्ग के रूप में सामाजिक-विषमताओं को-समाप्त कर सामाजिक-समत्व की स्थापना का प्रयत्न करता है। 2. आर्थिक-वैषम्य-आर्थिक-वैषम्य व्यक्तिऔर भौतिक-जगत के सम्बन्धों से उत्पन्न विषमता है। चेतना का जब भौतिक-जगत् से सम्बन्ध होता है, तो उसे अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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