SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 48 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन कर्मान्त और सम्यक्-आजीव-इन तीनों का अन्तर्भावशील में सम्यक् व्यायाम, सम्यक्स्मृति और सम्यक्-समाधि-इन तीनों का अन्तर्भाव प्रज्ञा में होता है। इस प्रकार, बौद्धदर्शन में भी मौलिक रूप से त्रिविध साधना-मार्ग ही प्ररूपित है। गीता का त्रिविध साधना-मार्ग-गीता में भी ज्ञान, कर्म और भक्ति के रूप में त्रिविध साधनामार्ग का उल्लेख है। इन्हें ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग के नाम से भी अभिहित किया गया है, यद्यपि गीता में ध्यानयोग का भी उल्लेख है। जिस प्रकार जैन-दर्शन में तप का स्वतन्त्र विवेचन होते हुए भी उसे सम्यक्-चारित्र के अन्तर्भूत लिया गया है, उसी प्रकार गीता में भी ध्यानयोग को कर्मयोग के अधीन माना जा सकता है। गीता में प्रसंगान्तर से मोक्ष की उपलब्धि के साधन के रूप में प्रणिपात, परिप्रश्न और सेवा का भी उल्लेख है।' इनमें प्रणिपात श्रद्धा या भक्ति का, परिप्रश्न ज्ञान और सेवा-कर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। योग-दर्शन में भी ज्ञानयोग, भक्तियोग और क्रियायोग के रूप में इसी त्रिविध साधना-मार्ग का प्रस्तुतिकरण हुआ है। वैदिक-परम्परा में इस त्रिविध साधना-मार्ग के प्रस्तुतिकरण के पीछे एक दार्शनिक-दृष्टि रही है। उसमें परमसत्ता या ब्रह्म के तीन पक्ष सत्य, सुन्दर और शिव माने गए हैं । ब्रह्म, जो कि नैतिक-जीवन का साध्य है, इन तीन पक्षों से युक्त है और इन तीनों की उपलब्धि के लिए ही त्रिविध साधना-मार्ग का विधान किया गया है। सत्य की उपलब्धि के लिए ज्ञान, सुन्दर की उपलब्धि के लिए भाव या श्रद्धा और शिव की उपलब्धि के लिए सेवा या कर्म माने गए हैं । उपनिषदों में श्रवण, मनन और निदिध्यासन के रूप में भी त्रिविध साधना-मार्ग निरूपित है। गहराई से देखें, तो श्रवण श्रद्धा, मनन ज्ञान और निदिध्यासन कर्म के अन्तर्गत आ जाते हैं। इस प्रकार, वैदिक-परम्परा में भी त्रिविधसाधना-मार्ग का विधान है। पाश्चात्य-चिन्तन में त्रिविध साधना-पथ-पाश्चात्य-परम्परा में तीन नैतिक आदेश उपलब्ध होते हैं- 1. स्वयं को जानो (Know Thyself), 2. स्वयं को स्वीकार करो (Accept Thyself) और 3. स्वयं ही बन जाओ (Be Thyself)| पाश्चात्य-चिन्तन के तीनआदेशज्ञान, दर्शन और चारित्र के समकक्षही हैं। आत्मज्ञान में ज्ञानका तत्त्व, आत्मस्वीकृति में श्रद्धा का तत्त्व और आत्म-निर्माण में चारित्र का तत्त्व स्वीकृत ही है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि त्रिविध साधना-मार्ग के विधान में जैन, बौद्ध और वैदिक-परम्पराएं ही नहीं, पाश्चात्य-विचारक भी एकमत हैं। तुलनात्मक रूप में उन्हें निम्न प्रकार से प्रस्तुत किया जा सकता हैजैन-दर्शन बौद्ध-दर्शन गीता उपनिषद् पाश्चात्य-दर्शन सम्यग्ज्ञान प्रज्ञा ज्ञान, परिप्रश्न मनन Know Thyself सम्यग्दर्शन श्रद्धा, चित्त, समाधि श्रद्धा, प्रतिपात श्रवण Accept Thyself सम्यक्चारित्र शील, वीर्य कर्म, सेवा निदिध्यासन BeThyself Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy