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जैन-आचार के सामान्य नियम
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में विश्वासपात्र नहीं बन पाता। किसी भी प्रकार दंभ (ढोंग), चाहे वह साधना से सम्बन्धित हो या जीव के अन्य व्यवहार से, अनुचित ही है। दशवैकालिकसूत्र के अनुसार, जो तपस्वी न होकर तपस्वी होने का ढोंग करता है, वह तप का चोर है, जो पंडित न होने पर भी वाक्पटुता के द्वारा पाण्डित्य का प्रदर्शन करता है, वह वचन-चोर है, जो व्यक्ति इस प्रकार के ढोंग करता है, वह निम्न योनियों को प्राप्त करता है और संसार में भटकता रहता है, उसे यथार्थ ज्ञान की उपलब्धि नहीं होती, इसीलिए कहा गया है कि बुद्धिमान् व्यक्ति कपट के इन दोषों को जानकर निष्कपट आचरण करे।7
बौद्ध-दृष्टिकोण-बुद्ध ने ऋजुताको कुशल धर्म कहा है। उनकी दृष्टि में माया या शठता (ठगी), दुर्गति, नरक की कारण है, जबकि ऋजुता (सरलता) सुख, सुगति, स्वर्ग और शैक्ष-भिक्षु के लाभ का कारण है।
महाभारत और गीता का दृष्टिकोण- महाभारत के अनुसार, सरलता एक आवश्यक सद्गुण है। 8 गीता में आर्जव को दैवी-सम्पदा, 90 तप" और ब्राह्मण का स्वाभाविक गुण कहा गया है। आर्जव और अदम्भ सद्गुणों की गीताकार ने ज्ञान में गणना की है और इनके विरोधी भावों को अज्ञान कहा है। 92 4. शौच (पवित्रता)
शौच पवित्रता का सूचक है। सामान्यतया, शौच का अर्थ दैहिक-पवित्रता से लगाया जाता है, किन्तु जैन-परम्परा में शौच शब्द का प्रयोग मानसिक-पवित्रता के अर्थ में ही हुआ है। समवायांग और स्थानांग की सूची में शौच के स्थान पर 'लाघव' उल्लेख मिलता है। वस्तुतः, साधना के लिए मानसिक-कालुष्य या वासनारूपी मल की शुद्धि आवश्यक है। विषय-वासनाओं या कषायों की गंदगी हमारे चित्त को कलुषित करती है, अतः उसकी शुद्धिहीशौच-धर्म है। पं. सुखलालजी ने शौच का अर्थ निर्लोभता किया है, किन्तु यह उचित नहीं लगता है , क्योंकि फिर इसका आकिञ्चन्य से भेद करना कठिन होगा। जैन-परम्परा के अनुसार, शौचका अर्थ मानसिक-शुद्धि करना ही अधिक युक्तिसंगत है। उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि अकलुष मनोभावों से युक्त धर्मरूपी सरोवर में स्नान कर विमल एवं विशुद्ध बना जाता है।
गीताका दृष्टिकोण-गीता में शौच की गणना दैवी-सम्पदा, ब्रह्मकर्म एवं तप में की गई है। आचार्य शंकर ने अपने गीता-भाष्य में शौच का अर्थ प्रतिपक्ष-भावना के द्वारा अन्तःकरण के रागादि मलों का दूर करना भी किया है, जो कि जैन-परम्परा के शौच के अर्थ के निकट है। 5. सत्य
सत्यधर्म से तात्पर्य है-सत्यता को अपनाना। असत्य भाषण से किस प्रकार विरत
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