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________________ भारतीय आचार - दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन हुआ भयरहित तथा अच्छी प्रकार शान्त अन्तःकरण वाला और सावधान होकर मन को वश करके मेरे में लगे हुए चित्तवाला और मेरे परायण हुआ स्थित होए 155 कायोत्सर्ग के लाभ - आचार्य भद्रबाहु ने कायोत्सर्ग के पाँच लाभ बताए हैं 56 - ( 1 ) देहजाड्यशुद्धि - श्लेष्म आदि के द्वारा देह में जड़ता आती है। कायोत्सर्ग से श्लेष्म आदि नष्ट होते हैं, अतः उनसे उत्पन्न होनेवाली जड़ता भी नष्ट हो जाती है। (2) मतिजाड्यशुद्धि - कायोत्सर्ग में मन की प्रवृत्ति केन्द्रित हो जाती है, उससे बौद्धिक - जड़ता क्षीण होती है । (3) सुख-दुःख - तितिक्षा, (4) कायोत्सर्ग में स्थित व्यक्ति अनुप्रेक्षाओं या भावनाओं का स्थिरतापूर्वक अभ्यास कर सकता है। (5) ध्यान - कायोत्सर्ग में शुभ ध्यान IT अभ्यास सहज हो जाता है। 444 कायोत्सर्ग के लाभ के सन्दर्भ में शरीर शास्त्रीय दृष्टिकोण - आधुनिक शरीर - शास्त्र की दृष्टि से विचार करने पर हम देखते हैं कि कायोत्सर्ग एक प्रकार से शारीरिकक्रियाओं की निवृत्ति है । शरीर शास्त्र की दृष्टि से शरीर को विश्राम देना आवश्यक है, क्योंकि शारीरिक-प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप शरीर में निम्न विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं1. स्नायुओं में स्नायु-शर्करा कम होती है। 2. लेक्टिक एसिड स्नायुओं में जमा होती है। 3. लेक्टिक एसिड की वृद्धि होने पर उष्णता बढ़ती है। 4. स्नायु तंत्र में थकान आती है। 5. रक्त में प्राणवायु की मात्रा कम होती है। कायोत्सर्ग के द्वारा शारीरिक क्रियाओं में शिथिलता आती है और परिणामस्वरूप शारीरिक तत्त्व, जो श्रम के कारण विषम स्थिति में हो जाते हैं, वे पुनः सम स्थिति में आ जाते हैं। (1) एसिड पुनः स्नायु-शर्करा में परिवर्तन होता है। (2) लेक्टिक एसिड का जमाव कम होता है। (3) लेक्टिक एसिड की कमी से उष्णता में कमी होती है। (4) स्नायुतन्त्र में ताजगी आती है। (5) रक्त में प्राणवायु की मात्रा बढ़ती है। मन, मस्तिष्क और शरीर में गहरा सम्बन्ध है। उनके असमंजस से उत्पन्न अवस्था ही स्नायविक - तनाव है । मानसिक आवेग उसके मुख्य कारण हैं । हम जब द्रव्यक्रिया करते हैं, अर्थात् शरीर को किसी दूसरे काम में लगाते हैं और मन कहीं दूसरे ओर भटकता है, तब स्नायविक - तनाव बढ़ता है। हम भाव-क्रिया करना सीख जाएं, शरीर और मन को साथ-साथ काम में संलग्न करने का अभ्यास कर लें, तो स्नायविक - तनाव बढ़ने का अवसर ही न मिले। - जो लोग इस स्नायविक - तनाव के शिकार होते हैं, वे शारीरिक और मानसिकस्वास्थ्य से वंचित रहते हैं। वे लोग अधिक भाग्यशाली हैं, जो इस तनाव से मुक्त रहते हैं । कायोत्सर्ग इसी तनाव मुक्ति का प्रयास है।” 6. प्रत्याख्यान इच्छाओं के निरोध के लिए प्रत्याख्यान एक आवश्यक कर्त्तव्य है । प्रत्याख्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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