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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
मान्यता है कि केवल तीर्थंकरों की स्तुति करने से मोक्ष एवं समाधि की प्राप्ति नहीं होती, जब तक कि मुनष्य स्वयं उसके लिए प्रयास न करे।
जैन-विचार के अनुसार, तीर्थंकर तो साधना-मार्ग के प्रकाशस्तम्भ हैं। जिस प्रकार गति करना जहाज का कार्य है, उसी प्रकार साधना की दिशा में आगे बढ़ना साधक का कार्य है। जैसे प्रकाश-स्तम्भ की उपस्थिति में भीजहाज समुद्र में बिना गति के उस पार नहीं पहुँचता, वैसे ही केवल नाम-स्मरण या भक्ति साधक को निर्वाण-लाभ नहीं करा सकती, जब तक कि उसके लिए सम्यक प्रयत्न न हो। डॉ. राधाकृष्णन् ने भी विष्णुपुराण एवं बाइबिल के आधार पर इस कथन की पुष्टि की है। विष्णुपुराण में कहा है कि जो लोग अपने कर्तव्य को छोड़ बैठते हैं और केवल कृष्ण-कृष्ण' कहकर भगवान् का नाम जपते हैं, वे वस्तुतः भगवान् के शत्रु हैं और पापी हैं, क्योंकिधर्म की रक्षा के लिए तो स्वयं भगवान् ने भी जन्म लिया था। बाइबिल में भी कहा है कि वह हर कोई, जो ईसा-ईसा' पुकारता है, स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं पाएगा, अपितु वह पाएगा, जो परमपिता की इच्छा के अनुसार काम करता है। महावीर ने कहा है कि एक मेरा नाम स्मरण करता है और दूसरा मेरी आज्ञाओं का पालन करता है, उनमें जो मेरी आज्ञाओं के अनुसार आचरण करता है, वही यथार्थतः मेरी उपासना करता है। बुद्ध भी कहते हैं कि जो धर्म को देखता है, वही मुझे देखता है। 25
फिर भी, हमें स्मरण रखना चाहिए कि जैन-परम्परा में भक्ति का लक्ष्य आत्मस्वरूप का बोध या साक्षात्कार है, अपने में निहित परमात्मा-शक्ति को अभिव्यक्त करना है। आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं कि सम्यक्ज्ञान और आचरण से युक्त हो निर्वाणाभिमुख होना ही गृहस्थ और श्रमण की वास्तविक भक्ति है। मुक्ति को प्राप्त पुरुषों के गुणों का कीर्तन करना व्यावहारिक-भक्ति है। वास्तविक भक्ति तो आत्मा को मोक्षपथ में योजित करना है, जो राग-द्वेष एवं सर्व विकल्पों का परिहार करके विशुद्ध आत्मतत्त्व से योजित होना है, यही वास्तविक भक्ति- योग है। ऋषभ आदि सभी तीर्थंकर इसी भक्ति के द्वारा परमपद को प्राप्त हुए हैं। 26 इस प्रकार, भक्ति या स्तवन मूलतः आत्मबोध है, वह अपना ही कीर्तन और स्तवन है। जैन-दर्शन में भक्ति के सच्चे स्वरूप को स्पष्ट करते हुए उपाध्याय देवचन्द्रजी लिखते हैं- 27
अज-कुल-गत केशरी लहेरे, निज पदसिहानहाल
तिम प्रभु भक्तिभवीलहेरे, आतमशक्ति संभाल॥ जिस प्रकार अज-कुल में पालित सिंहशावक वास्तविक सिंहके दर्शन से अपने
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