SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 422 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन लेता है। दूसरे, निवृत्तिपरक-आचरण साधक की सामंजस्य-क्षमता के अभाव का परिचायक नहीं है, वरन् साधक स्वयं उसे करना नहीं चाहता है, क्योंकि वह उसे विकास की सही दिशा नहीं मानता। ___इसे निराशावादिता भी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि साधक चरम लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है, साथ ही पूर्णता प्राप्ति का यह लक्ष्य सहज प्राप्य नहीं है, अतएव ऐसे मार्ग के पथिक में साहस का अभाव नहीं हो सकता, वरन् उसके हृदय में तो साहस का सागर हिलोरें मारता है। वैराग्यवादी-धारणा को सामाजिक-हित में घातक मानना भी उचित नहीं, क्योंकि प्रथम तो, वैराग्य का लक्ष्य आत्म-विकास के साथ ही जन-कल्याण भी रहता है। साधक का एक काम यह भी है कि वह साधना के द्वारा जिस सत्य को प्राप्त करे, उसे उस समाज को भी बताए जिसके द्वारा अपनी शारीरिक-आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। जैन-साधु के लिए यह आवश्यक है कि वह लोगों को सन्मार्ग बताए। समाज में नैतिक-व्यवस्था बनाए रखने के लिए ये साधक प्रहरी और प्रेरणासूत्र होते हैं, जो समाज से अल्पतम लेकर नैतिक-मूल्यों को जीवित रखते हैं। इस प्रकार, श्रमणसाधक समाज-हित के घातक नहीं हैं, वरन् वे समाज-व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण सेवा अर्पित करते हैं। वे समाज के सामने कठोर यातनाएँ सहकर कर्त्तव्यच्युत नहीं होते हुए अपना जीवन व्यतीत करते हैं। उनका जीवन 'सादा जीवन, उच्च विचार' का प्रतीक बन, समाज के प्राणियों में सद्भावना-सहयोग और परोपकार की वृत्ति जाग्रत करता है, वे लोगों को स्वार्थ के लिए जीना नहीं सिखाते, वरन् स्व-पर कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ____ यदि हम समाज में नैतिक-व्यवस्था चाहते हैं, सद्गुणों का विकास चाहते हैं, आपस में छीना-झपटी समाप्त करना चाहते हैं, तो इन निवृत्तिपरक-जीवन बिताने वाले साधकों के महत्व को समझना होगा। ___ लोग निवृत्तिपरक-जीवन जीने वाले साधकों को समाज पर भार समझते हैं। उन्हें सामाजिक-श्रम का शोषक कहा जाता है। उन लोगों को छोड़कर, जो केवल साधुवृत्ति के नाम पर पेट पालते हैं, सच्चे साधु या साधक को समाज के श्रम का शोषक नहीं कहा जा सकता। हम अपराधों के रोकने, याधन-सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए करोड़ों रुपए व्यय करते हैं, पुलिस, चौकीदार और बड़े-बड़े न्यायाधीश रखते हैं, उन्हें सामाजिक-श्रम काशोषक नहीं कहा जाता, लेकिन जो रोटी का टुकड़ा और कपड़ा लेकर समाज में सद्गुणों के विकास के लिए प्रयास करे, उपदेश दे, लोगों को अनैतिक-आचरण से विमुख रखे और स्वयं के आचरण से आदर्श उपस्थित करे, उसे हम सामाजिक-श्रम का शोषक कहें, यह बात बुद्धिगम्य नहीं लगती। यह सबसे बड़ी मूर्खता है कि हम सदाचार के वृक्ष को लगाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy