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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
प्रतिज्ञा की जाती है - 1. सभी प्रकार के अन्न, जल, मुखवास (पान,सुपारी आदि) और मेवा (सूखे फल आदि) चारों प्रकार के आहार का त्याग, 2. कामभोग का त्याग, अर्थात् ब्रह्मचर्य का पालन, 3. रजत, स्वर्ण एवं मणिमुक्ता आदि के बहुमूल्य आभूषणों का त्याग, 4. माल्य, गंध-धारण का त्याग, 5. हिंसक-उपकरणों एवं समस्त दोषपूर्ण प्रवृत्तियों का त्याग।
इस व्रत के पाँच प्रमुख दोष (अतिचार) - 1. अप्रतिलेखित-दुष्प्रतिलेखितशय्या-संस्तार-बिना देखे-भाले शय्या आदि का उपयोग करना, 2. अप्रमार्जितदुष्प्रमार्जित-शय्या - संस्तार - अप्रमार्जित शय्यादि का उपयोग करना, 3. अप्रतिलेखितदुष्प्रतिलेखित-उच्चार-प्रस्रवण-भूमि-ठीक-ठीक बिना देखे शौच या लघुशंका के स्थानों का उपयोग करना, 4. अप्रमार्जित-दुष्प्रमार्जित-उच्चार-प्रस्रवण-भूमि-अप्रमार्जित शौच या लघुशंका के स्थानों का उपयोग करना। इन चारों दोषों का विधान प्रमुखतः हिंसाअहिंसा की विवक्षा से हुआ है। 5. प्रोषधोपवास का सम्यक रूप से पालन नहीं करना, अर्थात् प्रोषध में निन्दा, विकथा, प्रमादादि का सेवन करना।
बौद्ध-विचारणा में उपोसथ (प्रोषध)- जैन-परम्परा की भाँति बौद्ध-परम्परा में भी प्रारम्भ से ही उपोसथ-व्रत गृहस्थ-उपासक का एक आवश्यक कर्त्तव्य रहा है। दोनों में इसके आचरण की तिथियाँ भी एक ही थीं। सुत्तनिपात में कहा गया है, प्रत्येक पक्ष की चतुर्दशी, पूर्णिमा, अष्टमी और प्रतिहार्य पक्ष को इस अष्टांग उपोसथका श्रद्धापूर्वक सम्यक रूप से पालन करना चाहिए। बौद्धपरम्परा में उपोसथ के नियम लगभग जैन-परम्परा के समान ही हैं, यथा-1. प्राणीवध न करे, 2. चोरी न करे, 3. असत्य न बोले; 4. मादक द्रव्य का सेवन न करे; 5. मैथुन से विरत रहे; 6.रात्रि में विकाल भोजनन करे; 7. माल्य एवं गन्ध का सेवन न करे; 8. उच्च शय्या का परित्याग कर काठ या जमीन पर शयन करेये अष्टशील उपोसथ-शीलकहे जाते हैं, 7 जिनका उपोसथ के दिन गृहस्थ-उपासक पालन करता है। महावीर की परम्परा में भोजनसहित जो प्रोषध किया जाता है, वह देशावकाशिकव्रत कहलाता है। बौद्ध-परम्परा में उपोसथ में विकाल भोजन का त्याग कहा गया, जबकि जैन-परम्परा प्रोषध में सभी प्रकार के भोजन का निषेध करती है। इसके अतिरिक्त, अन्य सभी बातों में लगभग समानता है। प्रोषध के पीछे जो विचार-दृष्टि है, वह यही है कि गृहस्थ-जीवन के प्रपंचों से अवकाश पा सप्ताह में एक दिन धर्माराधना की जाए। ईसाई एवं यहूदी-परम्परा में मूसा के दस आदेशों' या धर्म आज्ञाओं में एक आज्ञा यह भी है कि सप्ताह में एक दिवस विश्राम लेकर पवित्राचरण करना , जो कि इसी उपोसथ या प्रोषध का ही एक रूप थी, चाहे वह आज कितनी ही विकृत क्यों न हो गई हो। बौद्ध-परम्परा में
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