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________________ भारतीय आचार- दर्शन: एक तुलनात्मक अध्ययन उपासक दशांगसूत्र में जिस प्रकार व्रत - विवेचन और प्रतिमाओं की विवेचना को अलगअलग रखा गया है, उसी प्रकार हमने भी उन्हें अलग-अलग रखा है, यद्यपि इस प्रकार के विवेचन - क्रम में कुछ बातों की पुनरावृत्ति आवश्यक रूप से हुई है - गृहस्थ-साधकों के दो प्रकार 298 सभी गृहस्थ-उपासक साधना की दृष्टि से समान नहीं होते हैं, उनमें श्रेणी-भेद होता है । गुणस्थान - सिद्धान्त के आधार पर सामान्य रूप से गृहस्थ - उपासकों को निम्न दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। 1. अविरत (अव्रती) सम्यग्दृष्टि - अविरतसम्यग्दृष्टि उपासक वे हैं, जो सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र के साधना - मार्ग में पूर्ण निष्ठा रखते हुए भी अपने में आत्मानुशासन या संयम की कमी का अनुभव करते हुए सम्यक्चारित्र की साधना में आगे नहीं बढ़ते हैं। साधारण रूप में उनकी श्रद्धा और ज्ञान तो यथार्थ होता है, लेकिन आचरण सम्यक् नहीं होता । वासनाएँ बुरी हैं, यह जानते और मानते हुए भी वे अपनी वासनाओं पर अंकुश रखने में असमर्थता अनुभव करते हैं। जैन - साहित्य में मगधाधिपति श्रेणिक को इसी वर्ग का उपासक माना गया है। इस वर्ग में नैतिक जीवन के प्रति श्रद्धा तो होती है, लेकिन आचरण में अपेक्षित नैतिकता नहीं आ पाती है । 2. देशविरत (देशव्रती) सम्यग्दृष्टि - देशविरतसम्यग्दृष्टि के वर्ग में वे गृहस्थउपासक आते हैं, जो यथार्थ श्रद्धा के साथ-साथ यथाशक्ति सम्यक् आचरण के मार्ग में आगे बढ़कर वासनाओं पर नियंत्रण करते हैं। अहिंसा आदि अणुव्रतों का पालन करने वाला उपासक ही देशव्रती - सम्यग्दृष्टि कहा जाता है। इस वर्ग में चारित्रिक क्षमता के आधार पर अनेक उपवर्ग हो सकते हैं। इस वर्ग में नैतिक-श्रद्धा नैतिक आचरण का रूप ले लेती है। आनन्द आदि गृहस्थ-उपासक इसी वर्ग में आते हैं । गृहस्थ - उपासकों के तीन भेद पं. आशाधरजी ने अपने ग्रन्थ सागार- र- धर्मामृत में गृहस्थ-उपासकों के तीन भेद किए हैं - (1) पाक्षिक (2) नैष्ठिक (3) साधक । 1. पाक्षिक - जो व्यक्ति वीतराग को देव के रूप में, निग्रंथ मुनि को गुरु के रूप में और अहिंसा को धर्म के रूप में स्वीकार करते हैं, वे पाक्षिक गृहस्थ-उपासक कहे जाते हैं। देव, गुरु, धर्म अथवा साधना के आदर्श, साधना के पथ-प्रदर्शक और साधना - मार्ग की अभिस्वीकृति यह पक्ष है । इसको ग्रहण करने वाला साधक पाक्षिक कहलाता है। 2. नैष्ठिक - नैष्ठिक उपासक वे हैं, जो सात दुर्व्यसनों एवं औदुम्बर - फलों के भक्षण का त्याग करते हैं। सप्त दुर्व्यसन एवं औदुम्बर - फलों का त्याग - यह इस वर्ग की Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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