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समत्वयोग
हो जाता है । इस प्रकार, राग-द्वेषातीत समत्व-प्राप्ति की दिशा में प्रयत्न ही समालोच्य आचार - दर्शनों की नैतिक-साधना का केन्द्रीय तत्त्व है ।
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जैन - आचारदर्शन में समत्व-योग
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जैन- विचार में नैतिक एवं आध्यात्मिक साधना के मार्ग को समत्व-योग कह सकते हैं। इसे जैन- परिभाषित शब्दावली में सामायिक कहा जाता है। समग्र जैन नैतिक तथा आध्यात्मिक-साधना को एक ही शब्द में समत्व की साधना कह सकते हैं । सामायिक शब्द सम् उपसर्गपूर्वक अय् धातु से बना है । अय् धातु के तीन अर्थ हैं - ज्ञान, गमन और प्रापण । ज्ञान शब्द विवेक-बुद्धि का, गमन शब्द आचरण या क्रिया का और प्रापण शब्द प्राप्तिया उपलब्धि का द्योतक है। सम् उपसर्ग उनकी सम्यक् या उचितता का बोध कराता है। सम्यक् की प्राप्ति ही सम्यक्त्व या सम्यक्दर्शन है। कुछ विचारकों के अनुसार सम्यक्क्रिया विधि - पक्ष में सम्यक्चारित्र और भावपक्ष में सम्यग्दर्शन (श्रद्धा) है। दूसरे कुछ विचारकों की दृष्टि में सम्यक् - ज्ञान शब्द में दर्शन भी अन्तर्निहित है। सम् का एक अर्थ रागद्वेष से अतीत अवस्था भी है और अयु धातु का प्रापण या प्राप्तिपरक अर्थ लेने पर उसका अर्थ होगा-राग-द्वेष से अतीत अवस्था की प्राप्ति, जो प्रकारान्तर से मुक्ति का सूचक है। इस प्रकार, सामायिक (समत्वयोग) शब्द एक ओर सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्ररूप त्रिविध साधना-पथ को अपने में समाहित किए हुए है, तो दूसरी ओर इस त्रिविध साधना-पथ के साध्य (मुक्ति) से भी समन्वित है।
आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यकनिर्युक्ति में सामायिक के तीन प्रकार बताए हैं - 1. सम्यक्त्व - सामायिक, 2. श्रुत-सामायिक और 3. चारित्र - सामायिक | चारित्र - सामायिक
श्रम और गृहस्थ-साधकों के आचार के आधार पर दो भेद किए हैं।' सम्यक्त्व - सामायिक का अर्थ सम्यग्दर्शन, श्रुत-सामायिक का अर्थ सम्यग्ज्ञान और चारित्र - सामायिक का अर्थ सम्यक्चारित्र है। इन्हें आधुनिक मनोवैज्ञानिक भाषा में चित्तवृत्ति का समत्व, बुद्धि का समत्व और आचरण का समत्व कह सकते हैं । इस प्रकार, जैन- विचार का साधना-पथ वस्तुतः समत्वयोग की साधना ही है, जो मानव-चेतना के तीन पक्ष-भाव, ज्ञान और संकल्प के आधार पर त्रिविध बन गया है। भाव, ज्ञान और संकल्प को सम बनाने का प्रयास ही समत्व-योग की साधना है ।
जैन दर्शन में विषमता (दुःख) का कारण
यदि हम यह कहें कि जैनधर्म के अनुसार जीवन का साध्य समत्व का संस्थापन है, समत्व-योग की साधना है, तो सबसे पहले हमें यह जान लेना है कि समत्व से च्युति का कारण क्या है ? जैन-दर्शन में मोहजनित आसक्ति ही आत्मा के अपने स्वकेन्द्र से च्युति का
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