SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 284 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन 2. किसी का वध या अंगछेद मत करो, किसी से भी मर्यादा से अधिक काम मत लो, किसी पर शक्ति से अधिक बोझ मत लादो। 3. किसी की आजीविका में बाधक मत बनो। पारस्परिक-विश्वास को भंग मत करो।न तो किसी की अमानत हड़प जाओ और न किसी के गुप्त रहस्य को प्रकट करो। सामाजिक-जीवन में गलत सलाह मत दो, अफवाहें मत फैलाओ और दूसरों के चरित्र-हनन का प्रयास मत करो। अपने स्वार्थ की सिद्धि-हेतु असत्य घोषणा मत करो। न तो स्वयं चोरी करो, न चोर को सहयोग दो और न चोरी का माल खरीदो। 8. व्यवसाय के क्षेत्र में नाप-तौल में प्रामाणिकता रखो और वस्तुओं में मिलावट मत करो। 9. राजकीय-नियमों का उल्लंघन और राज्य के करों का अपवंचन मत करो। 10. अपने यौन सम्बन्धों में अनैतिक आचरण मत करो। वेश्या-संसर्ग, वेश्या-वृत्ति एवं उसके द्वारा धन का अर्जन मत करो। 11. अपनी सम्पत्ति का परिसीमन करो और उसे लोकहितार्थ व्यय करो। 12. अपने व्यवसाय के क्षेत्र को सीमित करो और वर्जित व्यवसाय मत करो। 13. अपनी उपभोग-सामग्री की मर्यादा करो और उसका अति संग्रह मत करो। 14. वे सभी कार्य मत करो, जिससे तुम्हारा कोई हित नहीं होता है। 15. यथासम्भव अतिथियों की, सन्तजनों की, पीड़ित एवं असहाय व्यक्तियों की सेवा करो। अन्न, वस्त्र, आवास, औषधि आदि के द्वारा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करो। 16. क्रोध मत करो, सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करो। 17. दूसरों की अवमानना मत करो, विनीत बनो, दूसरों का आदर-सम्मान करो। 18. कपटपूर्ण व्यवहार मत करो। दूसरों के प्रति व्यवहार में निश्छल एवं प्रामाणिक रहो। 19. तृष्णा मत रखो, आसक्ति मत बढ़ाओ। 20. न्याय-नीति से धन उपार्जन करो। 21. शिष्ट पुरुषों के आचार की प्रशंसा करो। 22. प्रसिद्ध देशाचार का पालन करो। 23. सदाचारी पुरुषों की संगति करो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy