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________________ 282 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन आदिपुराण में विवाह एवं पति-पत्नी के पारस्परिक एवं सामाजिक-दायित्वों की चर्चा है, उसमें विवाह के दो उद्देश्य बताए गए हैं- 1. कामवासना की तृप्ति और 2. सन्तानोत्पत्ति। जैनाचार्यों ने विवाह-संस्था को यौन सम्बन्धों के नियंत्रण एवं वैधीकरण के लिए आवश्यक माना था। गृहस्थ का स्वपत्नी-संतोषव्रत न केवल व्यक्ति की कामवासना को नियंत्रित करता है, अपितु सामाजिक-जीवन में यौन-व्यवहार को परिष्कृत भी बनाता है। अविवाहित स्त्री से यौनसम्बन्ध स्थापित करने, वेश्यागमन करने आदि का निषेध इसी बात का सूचक है। जैनधर्म सामाजिक-जीवन में यौन-सम्बन्धों की शुद्धि की आवश्यक मानता है। विवाह के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए आदिपुराण में बताया गया है कि जिस प्रकार ज्वर से पीड़ित व्यक्ति उसके उपशमनार्थ कटु-औषधि का सेवन करता है, उसी प्रकार काम-ज्वर से सन्तप्त हुआ प्राणी उसके उपशमनार्थ स्त्रीरूपी औषधि का सेवन करता है। यहाँ जैनधर्म की निवृत्तिप्रधान-दृष्टि को अक्षुण्ण रखते हुए वैवाहिक-जीवन की आवश्यकता का प्रतिपादन किया गया है। वैवाहिक-जीवन की आवश्यकता न केवल यौन-वासना की संतुष्टि के लिए, अपितु कुल, जाति एवं धर्म का संवर्द्धन करने के लिए भी है। आदिपुराण में यह भी उल्लेख है कि विवाह न करने से सन्तति का उच्छेद हो जाता है, सन्तति के उच्छेद से धर्म का उच्छेद हो जाता है, अतः विवाह गृहस्थों का धार्मिक कर्त्तव्य है।12 वैवाहिक जीवन में परस्पर प्रीति को आवश्यक माना गया है, यद्यपि जैनधर्म का मुख्य बल वासनात्मक-प्रेम की अपेक्षा समर्पण-भावना या विशुद्ध प्रेम की ओर अधिक है। नेमि और राजुल तथा विजयसेठ और विजया सेठानी के वासनारहित प्रेम की चर्चा से जैन कथा-साहित्य परिपूर्ण है। इन दोनों युगलों की गौरवगाथा आज भी जैन-समाज में श्रद्धा के साथ गायी जाती है। विजय सेठ और विजया सेठानी का जीवन वृत्त गृहस्थ-जीवन में रहकर ब्रह्मचर्य के पालन का सर्वोच्च आदर्श माना जाता है। वैवाहिक-जीवन से सम्बन्धित अन्य समस्याओं से विवाह-विच्छेद, विधवाविवाह, पुनर्विवाह आदिके विधि-निषेध के सम्बन्ध में हमें स्पष्ट उल्लेख तो प्राप्त नहीं होते हैं कि जैन-कथासाहित्य में इन प्रवृत्तियों को सदैव ही अनैतिक माना जाता रहा है। अपवादरूप से कुछ उदाहरणों को छोड़कर जैन-समाज में अभी तक इन प्रवृत्तियों का प्रचलन नहीं है और न ऐसी प्रवृत्तियों को अच्छी निगाह से देखा जाता है, यद्यपि विधवा-विवाह और पुनर्विवाह के समर्थक ऋषभदेव के जीवन का उदाहरण देते हैं । जैन-कथासाहित्य के अनुसार, ऋषभदेव ने एक युगलिये की अकाल मृत्यु हो जाने पर उसकी बहन/पत्नी से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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