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________________ भारतीय आचार- -दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन अधिकारी वही है, जो स्याद्वाद का आलम्बन लेकर सम्पूर्ण दर्शनों में समान भाव रखता है। माध्यस्थ-भाव ही शास्त्रों का गूढ़ रहस्य है, यही धर्मवाद है। माध्यस्य-भाव रहने पर शास्त्र के एक पद का ज्ञान भी सफल है, अन्यथा करोड़ों शास्त्रों का ज्ञान भी वृथा है । '१० एक सच्चा जैन सभी धर्मों एवं दर्शनों के प्रति सहिष्णु होता है। वह सभी में सत्य का दर्शन करता है। परमयोगी जैन सन्त आनन्दघनजी लिखते हैं --- 262 षट् दरसण जिन अंग भणीजे, न्याय षडंग जो साधे रे, नमि जिनवरना चरण उपासक, षटदर्शन आराधे रे । 81 राजनीतिक सहिष्णुता आज का राजनीतिक-जगत् भी वैचारिक-संकुलता से परिपूर्ण है । पूँजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, फासिस्टवाद, नाजीवाद आदि अनेक राजनीतिक विचारधाराएँ तथा राजतन्त्र, प्रजातन्त्र, कुलतन्त्र, अधिनायकतन्त्र आदि अनेकानेक शासन-प्रणालियाँ वर्त्तमान में प्रचलित हैं । मात्र इतना ही नहीं, उनमें से प्रत्येक एक-दूसरे की समाप्ति के लिए प्रयत्नशील हैं। विश्व के राष्ट्र खेमों में बँटे हुए हैं और प्रत्येक खेमे का अग्रणी राष्ट्र अपना प्रभाव - क्षेत्र बढ़ाने के हेतु दूसरे के विनाश में तत्पर है। मुख्य बात यह है कि आज का राजनीतिक संघर्ष आर्थिक हितों का संघर्ष न होकर वैचारिकता का संघर्ष है । आज अमेरिका और रूस अपनी वैचारिक- प्रमुखता के प्रभाव - क्षेत्र को बढ़ाने के लिए ही प्रतिस्पर्धा में लगे हुए हैं। एक-दूसरे को नामशेष करने की उनकी यह महत्वाकांक्षा कहीं मानव-जाति कोही नामशेष न कर दे। आज के राजनीतिक- जीवन में अनेकान्त के दो व्यावहारिक फलित-वैचारिकसहिष्णुता और समन्वय अत्यन्त उपादेय हैं । मानव-जाति ने राजनीतिक जगत् में राजतन्त्र से प्रजातन्त्र तक की जो लम्बी यात्रा तय की है, उसकी सार्थकता अनेकान्त - दृष्टि को अपनाने में ही है। विरोधी पक्ष के द्वारा की जाने वाली आलोचना के प्रति सहिष्णु होकर, उसके द्वारा अपने दोषों को समझना और उन्हें दूर करने का प्रयास करना, आज के राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विपक्ष की धारणाओं में भी सत्यता हो सकती है और सबल विरोधी दल की उपस्थिति से हमें अपने दोषों के निराकरण का अच्छा अवसर मिलता है - इस विचार - दृष्टि और सहिष्णु- - भावना में ही प्रजातन्त्र का भविष्य उज्ज्वल रह सकता है। राजनीतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातन्त्र ( पार्लियामेन्टरी डेमोक्रेसी) वस्तुतः राजनीतिक-अनेकान्तवाद है। इस परम्परा में बहुमत दल द्वारा गठित सरकार अल्पमत दल को अपने विचार प्रस्तुत करने का अधिकार मान्य करती है और यथासम्भव उससे लाभ भी उठाती है। दार्शनिक क्षेत्र में जहाँ भारत अनेकान्तवाद का सर्जक है, वहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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