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________________ भारतीय आचार- दर्शन: एक तुलनात्मक अध्ययन 911 " स्वयं प्राणी हिंसा से विरत रहता है, दूसरे को प्राणी-हिंसा की ओर नहीं घसीटता और प्राणी-हिंसा का समर्थन नहीं करता । बौद्धधर्म के महायान सम्प्रदाय में करुणा और मैत्री की भावना का जो चरम उत्कर्ष देखा जाता है, उसकी पृष्ठभूमि में यही अहिंसा का सिद्धान्त रहा है। 12 - हिन्दू धर्म में अहिंसा का स्थान - गीता में अहिंसा का महत्व स्वीकृत करते हुए उसे भगवान् का ही भाव कहा गया है। उसे दैवी- सम्पदा एवं सात्विक तप भी कहा है। महाभारत में तो जैन- विचारणा के समान ही अहिंसा में सभी धर्मों को अन्तर्भूत मान लिया गया है ।" यही नहीं, उसमें धर्म के उपदेश का उद्देश्य भी प्राणियों को हिंसा से विरत करना है | अहिंसा ही धर्म का सार है। महाभारतकार का कथन है- 'प्राणियों की हिंसा न हो, इसलिए धर्म का उपदेश दिया गया है, अतः जो अहिंसा से युक्त है, वही धर्म है । ' 14 लेकिन, यह प्रश्न हो सकता है कि गीता में बार-बार अर्जुन को युद्ध करने के लिए कहा गया, उसका युद्ध से उपरत होने का कार्य निन्दनीय तथा कायरतापूर्ण माना गया है, फिर गीता को अहिंसा की समर्थक कैसे माना जाए ? इस सम्बन्ध में गीता के व्याख्याकारों के दृष्टिकोणों को समझ लेना आवश्यक है। आद्य टीकाकार आचार्य शंकर 'युध्यस्व' (युद्ध कर) शब्द की टीका में लिखते हैं- यहाँ (उपर्युक्त कथन से) युद्ध की कर्त्तव्यता का विधान नहीं है ।'' इतना ही नहीं, आचार्य 'आत्मोपम्येन सर्वत्र' के आधार पर गीता में अहिंसा के सिद्धान्त की पुष्टि करते हैं – ‘जैसे मुझे सुख प्रिय है, वैसे ही सभी प्राणियों को सुख अनुकूल है और जैसे दुःख मुझे अप्रिय या प्रतिकूल है, वैसे ही सब प्राणियों को अप्रिय, प्रतिकूल है, इस प्रकार, जो सब प्राणियों में अपने समान ही सुख और दुःख को तुल्य भाव से अनुकूल और प्रतिकूल देखता है, किसी के भी प्रतिकूल आचरण नहीं करता, वही अहिंसक है। इस प्रकार का अहिंसक पुरुष पूर्ण ज्ञान में स्थित है, वह सब योगियों में परम उत्कृष्ट माना जाता है । ' 16 - 228 गांधी भी गीता को अहिंसा का प्रतिपादक ग्रन्थ मानते हैं। उनका कथन है - गीता की मुख्य शिक्षा हिंसा नहीं, अहिंसा है। हिंसा बिना क्रोध, आसक्ति एवं घृणा के नहीं होती और गीता हमें सत्व, रज और तमस्- गुणों के रूप में घृणा, क्रोध आदि अवस्थाओं से ऊपर उठने को कहती है। (फिर वह हिंसा की समर्थक कैसे हो सकती है) । 17 डॉ. राधाकृष्णन भी गीता को अहिंसा का प्रतिपादक ग्रन्थ मानते हैं । वे लिखते हैं - कृष्ण अर्जुन को युद्ध करने का परामर्श देता है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि वह युद्ध की वैधता का समर्थन कर रहा है। युद्ध तो एक ऐसा अवसर आ पड़ा है; जिसका उपयोग गुरु उस भावना की ओर संकेत करने के लिए करता है, जिस भावना के साथ सब कार्य, जिनमें युद्ध भी सम्मिलित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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