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सामाजिक-नैतिकता के केन्द्रीय-तत्त्व : अहिंसा, अनाग्रह और अपरिग्रह
के सभी अर्हत् यह उपदेश करते हैं कि किसी भी प्राण, पूत, जीव और सत्व को किसी प्रकार का परिताप, उद्वेग या दुःख नहीं देना चाहिए, न किसी का हनन करना चाहिए । यही शुद्ध, नित्य और शाश्वत धर्म है । समस्त लोक की पीड़ा को जानकर अर्हतों ने इसका प्रतिपादन किया है। 2 सूत्रकृतांगसूत्र के अनुसार, ज्ञानी होने का सार यह है कि किसी भी प्राणी की हिंसा न करें । अहिंसा ही समग्र धर्म का सार है, इसे सदैव स्मरण रखना चाहिए। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि सभी प्राणियों के हित-साधन में अहिंसा के सर्वश्रेष्ठ होने से महावीर ने इसको प्रथम स्थान दिया है । ' अहिंसा के समान दूसरा धर्म नहीं है । '
आचार्य अमृतचन्द्रसूरि के अनुसार तो जैन आचार - विधि का सम्पूर्ण क्षेत्र अहिंसा व्याप्त है, उसके बाहर उसमें कुछ है ही नहीं। सभी नैतिक-नियम और मर्यादाएँ इसके अन्तर्गत हैं । आचार-नियमों के दूसरे रूप, जैसे-असत्य भाषण नहीं करना, चोरी नहीं करना आदि तो जनसाधारण को सुलभ रूप से समझाने के लिए भिन्न-भिन्न नामों से कहे जाते हैं, वस्तुतः, वे सभी अहिंसा के ही विभिन्न पक्ष हैं । " जैन दर्शन में अहिंसा वह आधार - वाक्य है, जिसमें आचार के सभी नियम निर्गमित होते हैं । भगवती आराधना में कहा गया है - अहिंसा सब आश्रमों का हृदय है, सब शास्त्रों का गर्भ (उत्पत्ति-स्थान) है । ' बौद्धधर्म में अहिंसा का स्थान - बौद्ध-दर्शन के दस शीलों में अहिंसा का स्थान प्रथम है। चतुःशतक में कहा है कि तथागत ने संक्षेप में केवल 'अहिंसा' - इन अक्षरों में धर्म वर्णन किया है । बुद्ध ने हिंसा को अनार्य कर्म कहा है । वे कहते हैं, जो प्राणियों की हिंसा करता है, वह आर्य नहीं होता, सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा का पालन करने वाला आर्य कहा जाता है । "
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बुद्ध हिंसा एवं युद्ध के नीतिशास्त्र के घोर विरोधी हैं। धम्मपद में कहा गया हैविजय से वैर उत्पन्न होता है, पराजित दुःखी होता है। जो जय-पराजय को छोड़ चुका है, उसे ही सुख है, उसे ही शान्ति है । 10
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अंगुत्तरनिकाय में यह बात और अधिक स्पष्ट कर दी गई है। हिंसक व्यक्ति जगत् में नारकीय-जीवन का और अहिंसक व्यक्ति स्वर्गीय जीवन का सृजन करता है । वे कहते हैं“भिक्षुओं ! तीन धर्मों से युक्त प्राणी ऐसा होता है, जैसे लाकर नरक में डाल दिया गया हो । कौन-से तीन ? स्वयं प्राणी हिंसा करता है, दूसरे प्राणी को हिंसा की ओर घसीटता है और प्राणी-हिंसा का समर्थन करता है। भिक्षुओं ! तीन धर्मों से युक्त प्राणी ऐसा ही होता है, जैसे लाकर नरक में डाल दिया गया हो। "
“भिक्षुओं ! तीन धर्मो से युक्त प्राणी ऐसा होता है, जैसे लाकर स्वर्ग में डाल दिया गया हो। कौन-से तीन ?"
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