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________________ 190 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन रूप से उपस्थित हैं। आचार-दर्शन का कार्य यह नहीं है कि वह स्वार्थवाद या परार्थवाद में से किसी एक सिद्धान्त का समर्थन या विरोध करे। उसका कार्य तो यह है कि अपने और 'पराए के मध्य सन्तुलन बैठाने का प्रयास करे, अथवा आचार के लक्ष्य को इस रूप में प्रस्तुत करे कि जिसमें 'स्व' और 'पर' के बीच संघर्षों की सम्भावना का निराकरण किया जा सके। भारतीय आचार-दर्शन कहाँ तक और किस रूप में स्व और पर के संघर्ष की सम्भावना को समाप्त करते हैं, इस बात की विवेचना के पूर्व हमें स्वार्थवाद और परार्थवाद की परिभाषा पर भी विचार कर लेना होगा। संक्षेप में, स्वार्थवाद आत्मरक्षण है और परार्थवाद आत्मत्याग है। मैकेन्जी लिखते हैं कि जब हम केवल अपने व्यक्तिगत साध्य की सिद्धि चाहते हैं, तब इसे स्वार्थवाद कहा जाता है, परार्थवाद है-दूसरे के साध्य की सिद्धि का प्रयास करना।' जैनाचार-दर्शन में स्वार्थ और परार्थ- यदि स्वार्थ और परार्थ की उपर्युक्त परिभाषा स्वीकार की जाए, तो जैन, बौद्ध एवं गीता के आचार-दर्शनों में किसी को पूर्णतया न स्वार्थवादी कहा जा सकता है और न परार्थवादी। जैन आचार-दर्शन आत्मा के स्वगुणों के रक्षण की बात कहता है। इस अर्थ में वह स्वार्थवादी है। वह सदैव ही आत्मरक्षण या स्व-दया का समर्थन करता है, लेकिन साथ ही वह कषायात्मा या वासनात्मक आत्मा के विसर्जन, बलिदान या त्याग को भी आवश्यक मानता है और इस अर्थ में वह परार्थवादी भी है। यदि हम मैकेन्जी की परिभाषा को स्वीकार करें और यह मानें कि व्यक्तिगत साध्य की सिद्धि स्वार्थवाद और दूसरे के साध्य की सिद्धि का प्रयास परार्थवाद है, तो भी जैन-दर्शन स्वार्थवादी और परार्थवादी-दोनों ही सिद्ध होता है। वह व्यक्तिगत आत्मा के मोक्ष या सिद्धि का समर्थन करने के कारण स्वार्थवादी तो होगा ही, लेकिन दूसरे की मुक्ति के हेतु प्रयासशील होने के कारण परार्थवादी भी कहा जाएगा।आत्म-कल्याण, वैयक्तिक-बन्धन एवं दुःख से निवृत्ति की दृष्टि से तो जैन-साधना का प्राण आत्महित ही है, लेकिन लोक-करुणा एवं लोकहित की जिस उच्च भावना से अर्हत् - प्रवचन प्रस्फुटित होता है, उसे भी नहीं भुलाया जा सकता। जैन-साधना में लोक-हित-जैनाचार्य समन्तभद्र वीर-जिन-स्तुति में कहते हैं, 'हे भगवान! आपकी यह संघ (समाज) व्यवस्था सभी प्राणियों के दुःखों का अन्त करने वाली और सबका कल्याण (सर्वोदय) करने वाली है।'' इससे ऊँची लोकमंगल की कामना क्या हो सकती है ? प्रश्नव्याकरणसूत्र में कहा गया है कि भगवान् का यह सुकथित प्रवचन संसार के सभी प्राणियों के रक्षण एवं करुणा के लिए है। जैन-साधना लोक-मंगल की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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