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________________ सम्यक्-तप तथा योग-मार्ग 135 गीता में तपका वर्गीकरण -वैदिक-साधना में तप का सर्वांग वर्गीकरण गीता में प्रतिपादित है। गीता में तप का दोहरा वर्गीकरण है। एक, तप के स्वरूप का वर्गीकरण है, तो दूसरा, तप की उपादेयता एवं शुद्धता का। __प्रथम स्वरूप की दृष्टि से गीताकार तप के तीन प्रकार बताते हैं 46 - (1) शारीरिक, (2) वाचिक और (3) मानसिक। 1. शारीरिक-तप - गीताकार की दृष्टि में शारीरिक-तप हैं - 1. देव, द्विज, गुरुजनों और ज्ञानीजनों का पूजन (सत्कार एवं सेवा), 2. पवित्रता (शरीर की पवित्रता एवं आचरण की पवित्रता), 3. सरलता (अकपट), 4. ब्रह्मचर्य और 5. अहिंसा का पालन। 2.वाचिक-वाचिक-तपके अन्तर्गत क्रोधजाग्रत नहीं करने वाला,शान्तिप्रद, प्रिय एवं हितकारक यथार्थ भाषण, स्वाध्याय एवं अध्ययन-ये तीन प्रकार आते हैं। 3. मानसिक-तप-मन की प्रसन्नता, शान्त-भाव, मौन, मनोनिग्रह और भावसंशुद्धि। तप की शुद्धता एवं नैतिक-जीवन में उसकी उपादेयता की दृष्टि से तप के तीन स्तर या विभाग गीता में वर्णित हैं- 1. सात्विक-तप, 2. राजस-तप और 3. तामस-तप। गीताकार कहता है कि उपर्युक्त तीनों प्रकार का तप श्रद्धापूर्वक, फल की आकांक्षा से रहित एवं निष्काम-भाव से किया जाता है, तब वह सात्विक-तप कहा जाता है, लेकिन जो तप सत्कार, मान-प्रतिष्ठा अथवा दिखावे के लिए किया जाता है, तो वह राजस-तप कहा जाता है। 48 इसी प्रकार, जिस तप में मूढ़तापूर्वक अपने को भी कष्ट दिया जाता और दूसरे को भी कष्ट दिया जाता है और दूसरे का अनिष्ट करने के उद्देश्य से किया जाता है, वह तामसतप कहा जाता है। ___ वर्गीकरण की दृष्टि से गीता और जैन-विचारणा में प्रमुख अन्तर यह है कि गीता अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य एवं इन्द्रियनिग्रह, आर्जव आदिको भी तपकी कोटि में रखती है, जबकि जैन-विचारणा उन पर पाँच महाव्रतों एवंदस यतिधर्मों के सन्दर्भ में विचार करती है। इसी प्रकार, गीता में जैन-विचारणा के बाह्य-तपों पर विशेष विचार नहीं किया गया है। जैन-विचारणा के आभ्यन्तर-तपों पर गीता में तप के रूप में नहीं, वरन् अलग से विचार किया गया है, केवल स्वाध्याय पर तप के रूप में विचार किया गया है। ध्यान और कायोत्सर्ग का योग के रूप में, वैयावृत्य कालोक-संग्रह के रूप में एवं विनय पर गुण के रूप में विचार किया गया है। प्रायश्चित्त गीता में शरणागति बन जाता है।। वैसे, यदि समग्र वैदिक-साधना की दृष्टि से जैन-वर्गीकरण पर विचार किया जाए, तो तपके लगभग वे सभी प्रकार वैदिक-साधना में मान्य हैं। धर्मसूत्रों, विशेषकर वैखानस-सूत्र तथा अन्य स्मृति-ग्रन्थों के आधार पर इसे सिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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