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भारतीय आचार - दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
संवाद पर्याप्त प्रकाश डालता है । बुद्ध कहते हैं " हे सिंह! एक पर्याय ऐसा है, जिससे सत्यवादी मनुष्य मुझे तपस्वी कह सके। वह पर्याय कौनसा है ? हे सिंह! मैं कहता हूँ कि पापकारक अकुशल धर्मों को तपा डाला जाए। जिसके पापकारक अकुशल धर्म गल गए, नष्ट हो गए, फिर उत्पन्न नहीं होते, उसे मैं तपस्वी कहता हूँ ।" " इस प्रकार, बौद्ध-साधना जैन-साधना के समान आत्मा की अकुशल चित्तवृत्तियों या पाप - वासनाओं के क्षीण करने के लिए तप स्वीकृत रहा है ।
जैन - साधना में तप का वर्गीकरण
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जैन आचार-प्रणाली में तप के बाह्य (शारीरिक) और आभ्यन्तर (मानसिक) - ऐसे दो भेद हैं । " इन दोनों के भी छह-छह भेद हैं।
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(1) बाह्य-तप- 1. अनशन, 2. ऊनोदरी, 3. भिक्षाचर्या, 4. रस- परित्याग 5. कायक्लेश और 6. संलीनता ।
(2) आभ्यन्तर - तप - 1. प्रायश्चित्त, 2. विनय, 3. वैयावृत्य, 4. स्वाध्याय 5. ध्यान और 6. व्युत्सर्ग | भेद "
शारीरिक या बाह्य - तप के
1. अनशन - आहार के त्याग को अनशन कहते हैं । यह दो प्रकार का है - एक, निश्चित समयावधि के लिए किया हुआ आहार- त्याग, जो एक दिन से लगाकर छह मास तक का होता है। दूसरा, जीवन - पर्यन्त के लिए किया हुआ आहार - त्याग । जीवन - पर्यन्त
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लिए आहार - त्याग की अनिर्वाय शर्त यह है कि उस अवधि में मृत्यु की आकांक्षा नहीं होनी चाहिए । आचार्य पूज्यपाद के अनुसार, आहार-त्याग का उद्देश्य आत्म-संयम, आसक्ति में कमी करना, ध्यान, ज्ञानार्जन और कर्मों की निर्जरा है, न कि सांसारिक - उद्देश्यों की पूर्ति 141 अनशन में मात्र देह - दण्ड नहीं है, वरन् आध्यात्मिक - गुणों की उपलब्धि का उद्देश्य निहित है । स्थानांगसूत्र में आहार ग्रहण करने के और आहार-त्याग के छह-छह कारण बताए गए हैं । उसमें भूख की पीड़ा की निवृत्ति, सेवा, ईर्यापथ, संयमनिर्वाहार्थ, धर्मचिन्तनार्थ और प्राणरक्षार्थ ही आहार 'ग्रहण' करने की अनुमति है ।
(2) ऊनोदरी (अवमौदर्य) - इस तप में आहार - विषयक कुछ स्थितियाँ या शर्तें निश्चित की जाती हैं। इसके चार प्रकार हैं- 1. आहार की मात्रा से कुछ कम खाना, यह द्रव्य - ऊनोदरी - तप है। 2. भिक्षा के लिए, आहार के लिए कोई स्थान निश्चित कर वहीं से मिली भिक्षा लेना, यह क्षेत्रऊनोदरी - तप है 13. किसी निश्चित समय पर आहार लेना, यह काल - ऊनोदरी - तप है । 4. भिक्षा - प्राप्ति के लिए या आहार के लिए किसी शर्त (अभिग्रह) का निश्चय कर लेना, यह भाव - ऊनोदरीतप है। संक्षेप में, ऊनोदरी-तप वह है, जिसमें किसी विशेष समय एवं स्थान पर, विशेष प्रकार से उपलब्ध आहार को अपनी आहार की मात्रा से कम मात्रा में ग्रहण किया जाता है। मूलाचार के अनुसार, ऊनोदरी- तप
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