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________________ 124 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन ही होता है। त्याग की भावना ही तप है। दूसरे, तप का एक अर्थ होता है-प्रयत्न, प्रयास और इस अर्थ में भी वहाँ तप' है, क्योंकि वासना की पूर्ति भी बिना प्रयास के सम्भव नहीं है, लेकिन यह सब तो तप का निम्नतमरूप है, यह उपादेय नहीं है। हमारा प्रयोजन तो यहाँ मात्र इतना दिखाना था कि कोई भी नैतिक-प्रणाली तपःशून्य नहीं हो सकती। जहाँ तक भारतीय नैतिक-विचारधाराओं की, आचार-दर्शनों की बात है, उनमें से लगभग सभी का जन्म तपस्या' की गोद में हुआ, सभी उसी में पले एवं विकसित हुए हैं। यहाँ तो घोर भौतिकवादी अजित-केसकम्बलिन् और नियतिवादी गोशालक भी तपसाधना में प्रवृत्त रहते हैं, फिर दूसरी विचार-सरणियों में निहित तप के महत्व पर तो शंका करने का प्रश्न ही नहीं उठता। हाँ, विभिन्न विचार-सरणियों में तपस्या के लक्ष्य के सम्बन्ध में मत-भिन्नता हो सकती है, तप के स्वरूप के सम्बन्ध में विचार-भेदहो सकता है, लेकिन तपस्या के तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता। तप-साधना भारतीय नैतिक-जीवन एवं संस्कृति का प्राण है। श्री भारतसिंह उपाध्याय के शब्दों में भारतीय-संस्कृति में जो कुछ भी शाश्वत है, जो कुछ भी उदात्त एवं महत्वपूर्ण तत्त्व है, वह सब तपस्या से ही सम्भूत है, तपस्या से ही इस राष्ट्र का बल याओज उत्पन्न हुआ है.... तपस्या भारतीय-दर्शनशास्त्र की ही नहीं, किन्तु उसके समस्त इतिहास की प्रस्तावना है ... प्रत्येक चिन्तनशील प्रणाली, चाहे वह आध्यात्मिक हो, चाहे आधिभौतिक , सभी तपस्या की भावना से अनुप्राणित हैं ... उसके वेद, वेदांग, दर्शन, पुराण, धर्मशास्त्र आदि सभी विद्या के क्षेत्र जीवन की साधनारूप तपस्या के एकनिष्ठ उपासक हैं। भारतीय नैतिक-जीवन या आचार-दर्शन में तप के महत्व को अधिक स्पष्ट करते हुए काका कालेलकर लिखते हैं, 'बुद्धकालीन भिक्षुओं की तपश्चर्या के परिणामस्वरूप ही अशोक के साम्राज्य का और मौर्य (कालीन) संस्कृति का विस्तार हो पाया। शंकराचार्य की तपश्चर्या से हिन्दू-धर्म का संस्करण हुआ। महावीर की तपस्या से अहिंसा-धर्म का प्रचार हुआ।.....बंगाल के चैतन्य महाप्रभु (जो) मुखशुद्धि के हेतु एक हर्र भी नहीं रखते थे, उन्हीं से बंगाल की वैष्णव-संस्कृति विकसित हुई। यह सब तोभूतकाल के तथ्य हैं, लेकिन वर्तमान युग का जीवन्त तथ्य है-गांधी और अन्य भारतीय-नेताओं का तपोमय जीवन, जिसने अहिंसक-क्रान्ति के आधार पर देशको स्वतन्त्रता प्रदान की। वस्तुतः, तपोमय जीवन-प्रणाली ही भारतीय-नैतिकता का उज्ज्वलतम पक्ष है और उसके बिना भारतीय आचार-दर्शन को, चाहे वह जैन, बौद्ध या हिन्दूआचारदर्शन हो, समुचित रूप से समझा नहीं जा सकता। नीचे तप के महत्व, लक्ष्य, प्रयोजन एवं स्वरूपके सम्बन्ध में विभिन्न भारतीय साधना-पद्धतियों के दृष्टिकोणों को देखने एवं उनका समीक्षात्मक-दृष्टि से मूल्यांकन करने का प्रयास किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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