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भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन
एकांगी दृष्टिकोण को स्वीकार करके नहीं चलते हैं। भारतीय-चिन्तन और विशेषकर जैनविचारणा एक सर्वांगीण एवं समन्वयवादी दृष्टिकोण को लेकर आगे आती है, अत: जहाँ उनमें विभिन्न पाश्चात्य-विचारधाराओं के तत्त्वों की उपस्थिति पायी जाती है, वहीं वे अपनी व्यापक दृष्टि के आधार पर उनमें समन्वय का सूत्र भी प्रस्तुत कर देते हैं। भारतीयआचारदर्शनों का दृष्टिकोण व्यापक एवं समन्वयवादी है। यही कारण है कि उन्हें पाश्चात्य नैतिक-चिन्तन के विभिन्न चौखटों में कहीं भी फिट नहीं किया जा सकता, वरन् इसके विपरीत उनकी व्यापक दृष्टि के आधार पर विभिन्न पाश्चात्य-विचारधाराओं को एक समग्र एवं समन्वित रूप में देखा जा सकता है।
सन्दर्भग्रन्थ1. उत्तराध्ययनचूर्णि, 3. 2. हितोपदेश, 25. 3. आचारांग, 1/1/4; दशवैकालिक, 4/7. 4. गीता, 2/6-8. 5. आचरांगनियुक्ति, 219. 6. मूलाचार, 202. 7. उत्तराध्ययन, 28/11. 8. आचारांगनियुक्ति, 189. 9. गीता, 3/5. 10. विसुद्धिमग्ग, उद्धृत-बौद्ध-दर्शन तथा अन्य भारतीय दर्शन (प्रथम भाग), पृ. 511. 11. देखिए-नीतिप्रवेशिका, पृ. 21 12. वही, पृ. 21. 13. दशवैकालिक,4/11. 14. गीता, 16/24. 15. उत्तराध्ययन, 23/25. 16. वही, 23/31. 17. दशवैकालिक, 4/10. 18. वही, 4/11. 19. दर्शनपाहुड, 16. 20. गीता, 4/17. 21. वही, 17/24.
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