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________________ 548 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन वरन् पाश्चात्य विचारक भी इस विषय में एकमत हैं कि व्यक्ति के मनोभावों से उसका चरित्र बनता है और उसके आधार पर उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। व्यक्ति का आचरण एक ओर उसके मनोभावों का परिचायक है, तो दूसरी ओर उसके नैतिकव्यक्तित्व का निर्माता भी है। मनोभाव एवं तज्जनित आचरण जैसे-जैसे अशुभ से शुभ की ओर बढ़ता है, वैसे-वैसे नैतिक-दृष्टि से व्यक्तित्व में भी परिपक्वता एवं विकास दृष्टिगत होता है। ऐसे शुद्ध, संतुलित, स्थिर एवं परिपक्व व्यक्तित्व का निर्माण ही आचार-दर्शन का लक्ष्य है। m & in on os oa सन्दर्भ ग्रंथ1. दशवैकालिक,8/40. 2. देखिए- अभिधान राजेन्द्रकोश, खण्ड 3, पृ. 395. 3. स्थानांग,2-2. विशेषावश्यकभाष्य, 2668-2671. तुम अनन्तशक्ति के स्रोत हो, पृ. 47. अभिधान राजेन्द्रकोश, खण्ड 3, पृ. 395 भगवतीसूत्र, 12/5/2. अंगुत्तरनिकाय,3/130. भगवती सूत्र, 12/43. वही, 12/54. 11. भगवती सूत्र, 15/5/5. 12. तुलना कीजिए- जीवनवृत्ति और मृत्युवृत्ति (फ्रायड) अभिधान राजेन्द्रकोश, खण्ड 4,पृ. 2161. वही अभिधान राजेन्द्रकोश, खण्ड7, पृ. 1157. वही, खण्ड 6,पृ. 467. 17. श्रमण आवश्यक सूत्र-भयसूत्र. 18. जैनसाइकोलाजी, 131-134. तुम अनन्त शक्ति के स्रोत हो, पृ. 47. 20. दशवैकालिक,8/37. 21. वही, 8/38. 22. योगशास्त्र, 4/10, 18. 14. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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