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________________ 546 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन लेश्या-सिद्धान्त एवं पाश्चात्य-नीतिवेत्ता रास का नैतिक-व्यक्तित्व का वर्गीकरण- पाश्चात्य-नीतिशास्त्र में डब्ल्यू. रास भी एक ऐसा वर्गीकरण प्रस्तुत करते हैं, जिसकी तुलना जैन लेश्या-सिद्धान्त से की जा सकती है। रास कहते हैं कि नैतिक-शुभ एक ऐसा शुभ है, जो हमारे कार्यों, इच्छाओं, संवेगों तथा चरित्र से सम्बन्धित है। नैतिक-शुभता का मूल्य केवल इसी बात में नहीं है कि उसका प्रेरक क्या है, वरन् उसकी अनैतिकता के प्रति अवरोधक-शक्ति से भी है। नैतिक-शुभत्व के सन्दर्भ में मनोभावों का उनके निम्नतम रूप से उच्चतम रूप तक निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है - 1. दूसरों को जितना अधिक दु:ख दिया जा सकता है, देने की इच्छा। 2. दूसरों को किसी विशेष प्रकार का अस्थायी दुःख उत्पन्न करने की इच्छा। 3. नैतिक-दृष्टि से अनुचित सुख प्राप्त करने की इच्छा। 4. ऐसा सुख प्राप्त करने की इच्छा, जो नैतिक-दृष्टि से उचित न भी हो, लेकिन कम से कम अनुचित भी न हो। नैतिक-दृष्टि से उचित सुख प्राप्त करने की इच्छा। 6. दूसरों को सुख देने की इच्छा। 7. कोई शुभ कार्य करने की इच्छा। 8. अपने नैतिक-कर्त्तव्य के परिपालन की इच्छा।68 रास अपने इस वर्गीकरण में जैन लेश्या-सिद्धान्त के काफी निकट आ जाते हैं। जैन-विचारक और रास-दोनों स्वीकार करते हैं कि नैतिक-शुभ का सम्बन्ध हमारे कार्यों, इच्छाओं, संवेगों तथा चरित्र से है। यही नहीं, दोनों व्यक्ति के नैतिक-विकास का मूल्यांकन इस बात से करते हैं कि व्यक्ति के मनोभावों एवं आचरण में कितना परिवर्तन हुआ है और वह विकास की किस भूमिका में स्थित है। रास के वर्गीकरण के पहले स्तर की तुलना कृष्णलेश्या की मनोभूमि से की जा सकती है, दोनों ही दृष्टिकोण के अनुसार इस स्तर में प्राणी की मनोवृत्ति दूसरों को यथासम्भव दुःख देने की होती है। जैन-विचारणा का जामुन के वृक्ष वाला उदाहरण भी यही बताता है कि कृष्णलेश्या वाला व्यक्ति उस जामुन के वृक्ष को मूल से समाप्त करने की इच्छा रखता है, अर्थात् जितना विनाश किया जा सकता है, या जितना दु:ख दिया जा सकता है, उसे देने की इच्छा रखता है। दूसरे स्तर की तुलना नीललेश्या से की जा सकती है। रास के अनुसार व्यक्ति इस स्तर में दूसरों को अस्थायी दुःख देने की इच्छा रखता है, जैन-दृष्टि के अनुसार भी इस अवस्था में प्राणी दूसरे को दुःख उसी स्थिति में देना चाहता है, जब उनके दुःख देने से उसका स्वार्थ सधता है। इस प्रकार, इस स्तर पर प्राणी दूसरों को तभी दुःख देता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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