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भारतीय आचार- दर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन
जिस चित्त की प्रवृत्ति का लोभ-द्वेष और मोह तथा अलोभ (परोपकार-वृत्ति), अद्वेष (हित-चिन्ता) और अमोह (प्रज्ञा) - इन छह हेतुओं में से कोई भी हेतु होता है, वह सहेतुकचित्त है। बौद्ध दर्शन के अनुसार मनुष्य जिस किसी कार्य में प्रवृत्त होता है, वह इन छह हेतुओं में से किसी एक को लेकर प्रवृत्त होता है। सहेतुक - चित्त तीन प्रकार का होता है - 1. अकुशल, 2. कुशल और 3. अव्यक्त । इनमें लोभ, द्वेष और मोह- ये तीन अकुशल-चित्त प्रेरक हैं। जब वह अलोभ, अद्वेष और अमोह से प्रवृत्त होता है, तो कुशल चित्त कहा
अव्यक्त प्रकार का होता है- 1. विपाक सहेतुक - चित्त और 2. क्रिया सहेतुक - चित्त । जब सहेतुक - चित्त की प्रवृत्ति पूर्वकृत-कर्म के फल भोग के रूप में मात्र वेदनात्मक (विपाक चेतना के रूप में) होती है, तो वह विपाक सहेतुक - चित्त होता है और वीतराग, वीततृष्ण अर्हत् को अपने क्रिया - व्यापार की जो चेतना है, वह क्रिया सहेतुकचित्त कहा जाता है । यद्यपि क्रिया-सहेतुक चित्त में क्रिया- प्रेरक अलोभ, अद्वेष और अमोह
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तत्त्व तो उपस्थित रहते हैं, तथापि तृष्णा के अभाव के कारण उस क्रिया का शुभ या अशुभ फल- विपाक (ईर्यापथिक-क्रिया के समान) नहीं होता है। यह चित्त केवल अर्हत् का है। इस प्रकार, सहेतुक - चित्त अकुशल, कुशल तथा अव्यक्त - तीन प्रकार का होता है। सहेतुककुशल में अलोभ, अद्वेष और अमोह के कर्म-प्रेरक होते हैं। सहेतुक - अव्यक्त चित्त में भी अलोभ, अद्वेष और अमोह के कर्म-प्रेरक होते हैं, लेकिन उसमें तृष्णा (राग - भाव) का अभाव होता है। इन तीन सहेतुक - चित्तों के बावन चैतसिक-धर्म (चित्त-अवस्थाएँ) माने गए हैं, जिनमें तेरह अन्य- समान, चौदह अकुशल और पच्चीस कुशल होते हैं ।
(अ) अन्य - समान चैत्तसिक- जो चैत्तसिक कुशल, अकुशल और अव्यक्त, सभी चित्तों में समान रूप से रहते हैं, वे अन्य समान कहे जाते हैं। अन्य समान चैत्तसिक भी दो प्रकार के हैं
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(क) साधारण अन्य समान चैत्तसिक- जो प्रत्येक चित्त में सदैव उपस्थित रहते हैं। ये सात हैं- 1. स्पर्श, 2. वेदना, 3. संज्ञा, 4. चेतना, 5. एकाग्रता (आंशिक), 6. जीवितेन्द्रिय और 7. मनोविकार ।
(ख) प्रकीर्ण अन्य - समान चैत्तसिक- जो प्रत्येक चित्त में यथावसर उत्पन्न होते रहते हैं। ये छह हैं- 1. वितर्क, 2. विचार, 3. अधिमोज्ञ (आलम्बन में स्थिति), 4. वीर्य (साहस), 5. प्रीति (प्रसन्नता) और 6. छन्द (इच्छा)।
(ब) अकुशल- चैत्तसिक- ये चौदह हैं- 1. मोह, 2. निर्लज्जता, 3. अभीरुता (पाप करने में भय नहीं खाना), 4. चंचलता, 5. लोभ, 6. मिथ्यादृष्टि, 7. मान, 8. द्वेष,
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