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________________ जैन-आचारदर्शन का मनोवैज्ञानिक पक्ष 489 14. हास्य (आमोद)। भारतीय-चिन्तन में इस सम्बन्धमें कोई मतैक्य नहीं है कि मूलभूत व्यवहार के प्रेरक तत्त्व कितने हैं। जैन-दर्शन में व्यवहार के प्रेरक तत्त्वों (संज्ञाओं) का वर्गीकरण- जहाँ तक जैन-विचारणा का प्रश्न है, उसमें भी हमें इनकी संख्या के सम्बन्ध में एकरूपता नहीं मिलती।जैनागमों में सण्णाचेतनापरक-व्यवहार के प्रेरक तथ्यों के अर्थ में रूढ़ हो गया है। संज्ञा शारीरिक-आवश्यकताओं एवं भावों की मानसिक-संचेतना है, जो परवर्ती व्यवहार की प्रेरक बनती है। किसी सीमा तक जैन संज्ञा' शब्द को मूलप्रवृत्तिका समानार्थक माना जा सकता है। जैनागमों में संज्ञा का वर्गीकरण अनेक प्रकार से मिलता है, जिनमें तीन वर्गीकरण प्रमुख हैं - (अ) चतुर्विध वर्गीकरण- 1. आहार-संज्ञा, 2. भय-संज्ञा, 3. परिग्रह-संज्ञा और 4. मैथुन-संज्ञा। (ब) दशविध वर्गीकरण- 1. आहार, 2. भय, 3. परिग्रह, 4. मैथुन, 5. क्रोध, 6. मान, 7. माया, 8. लोभ, 9. लोक और 10. ओघ।28। (स) षोडषविध वर्गीकरण- 1. आहार, 2. भय, 3. परिग्रह, 4. मैथुन, 5. सुख, 6. दुःख, 7. मोह, 8. विचिकित्सा, 9.क्रोध, 10. मान, 11. माया, 12. लोभ, 13. शोक, 14. लोक, 15. धर्म और 16. ओघ। । ___इन वर्गीकरणों में प्रथम वर्गीकरण केवल शारीरिक-प्रेरकों को प्रस्तुत करता है, जबकि अन्तिम वर्गीकरण में शारीरिकया जैविक (Biological), मानसिक एवं सामाजिक (Social) प्रेरकों का भी समावेश है। दूसरे एवं तीसरे वर्गीकरण में क्रोधादि कुछ कषायों एवं नोकषायों को भी संज्ञा के वर्गीकरण में समाविष्ट कर लिया गया है। संज्ञा और कषाय में अन्तर ठीक उसी आधार पर किया जा सकता है, जिस आधार पर पाश्चात्य-मनोविज्ञान में मूलप्रवृत्ति और उसके संलग्न संवेग में किया जाता है। क्रोध की संज्ञा क्रोध-कषाय से ठीक उसी प्रकार भिन्न है, जिस प्रकार आक्रामकता की मूलप्रवृत्ति से क्रोध का संवेग भिन्न है। तुलनात्मक-दृष्टि से विचार करने पर संज्ञा एवं मूल-प्रवृत्तियों के वर्गीकरण में बहुत कुछ एकरूपता पाई जाती है। बौद्ध-दर्शन के बावन चैत्तसिक-धर्म- बौद्ध-दर्शन में कर्म-प्रेरकों के रूप में चैत्तसिक-धर्म माने जा सकते हैं। सभी चैत्तसिक-धर्म वे तथ्य हैं, जो चित्त की प्रवृत्ति के हेतु हैं। हेतु के आधार पर चित्त दो प्रकार का माना गया है- 1. अहेतुक-चित्त-जिस चित्त की प्रवृत्ति का लोभ, द्वेष आदिकोई हेतु नहीं है, वह अहेतुक-चित्त है और 2. सहेतुक-चित्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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