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________________ भारतीय आचार- दर्शन: एक तुलनात्मक अध्ययन इसलिए भी आवश्यक है कि अनेक नैतिक-प्रत्ययों (उदाहरणार्थ - इच्छा, प्रेरणा, संकल्प, सुख, दुःख आदि) के यथार्थ स्वरूप का विश्लेषण मनोविज्ञान ही प्रदान करता है। कांट एक ऐसा पाश्चात्य दार्शनिक था, जिसने मनोवैज्ञानिक तथ्यों की परवाह किए बिना बौद्धिकआधार पर आचार - दर्शन के निर्माण की कल्पना की थी, लेकिन यही बात उसके आचारदर्शन की आलोचना का प्रमुख कारण भी बनी। इतना ही नहीं, कांट के बाद पुनः आचारदर्शन की दिशा मनोवैज्ञानिक तथ्यों की ओर गई। कांट ने मनोविज्ञान और आचार - दर्शन 480 मेलजोल अरस्तू के युग से ह्यूम और सुखवादी विचारकों के समय तक चला आया था, उसे समाप्त करने की कोशिश की थी, लेकिन काँट के बाद के विचारकों में हेगल ने उसे फिर से जोड़ने की कोशिश की और सम्भवत: ब्रेडले ने पुनः उसे मधुर बना दिया। रिचर्ड वो लिखते हैं, 'निकट भूत के नैतिक-दर्शन की यह विशेषता थी कि उसने दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक- प्रश्नों को अलग-अलग कर दिया, लेकिन अब नैतिक-दर्शन का सबसे अच्छा कार्य यही होगा कि वह निकट भविष्य में मानव-व्यवहार के इन पक्षों को इस प्रकार अलग-अलग करके न रखें। 2" यद्यपि यह सही है कि आचार - दर्शन और मनोविज्ञान की प्रकृति भिन्न-भिन्न है, एक नियामक है, तो दूसरा विधायक, और यह भी सही है कि आचार-दर्शन के मनोवैज्ञानिक आधारों को ही सब कुछ मान लेने पर हम तार्किकभाववादी अथवा मनोवैज्ञानिक नैतिक-सन्देहवाद की भ्रान्तियों से ग्रसित होंगे। मनोविज्ञान और आचार - दर्शन को एक-दूसरे से नितान्त स्वतंत्र मान लेना और आचार-दर्शन को मनोविज्ञान का ही एक अंग बना देना- दोनों दृष्टियाँ भ्रान्तिपूर्ण हैं । वस्तुत:, नैतिकआदर्श के निर्धारण में मनोवैज्ञानिक आधारों पर मानवीय प्रकृति को समझना ही सम्यक् दृष्टिकोण है। जैन, बौद्ध और गीता के आचार- दर्शनों में मनोवैज्ञानिक तथ्यों की अवहेलना नहीं हुई है। जैन-चिन्तकों ने तो मनोवैज्ञानिक तथ्यों को बड़ी गहराई से समझा है। उन्होंने अपने नैतिक आदर्श और नैतिक साधना-पथ का निर्माण ठोस मनोवैज्ञानिक - नींव पर किया है। जैन आचार - दर्शन व्यक्ति की यथार्थ मनोवैज्ञानिक - प्रकृति से भिन्न नैतिकआदर्श की कल्पना नहीं करता। स्व-स्वरूप से भिन्न नैतिकता यथार्थ नहीं हो सकती। जो हमारी आत्मा का स्वाभाविक स्वरूप है, वही हमारे नैतिक जीवन का परम आदर्श हो सकता है। ऐसी नैतिकता, जो व्यक्ति का अपना अंग न होकर, उसकी मनोवैज्ञानिकप्रकृति से प्रतिकूल हो, जीवन का आदर्श नहीं बन सकती। जैन आचार - दर्शन और मनोविज्ञान- जैन आचार - दर्शन ठोस मनोवैज्ञानिक -. Jain Education International -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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