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नैतिक-जीवन का साध्य (मोक्ष)
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उतरना संभव नहीं है। हम अपनी इस विवेचना में ईश्वर के सम्बन्ध में केवल उन्हीं दृष्टिकोणों से विचार करेंगे, जो कि नैतिक-जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। ईश्वर के सम्बन्ध में नैतिकदृष्टिकोण से विचार करने पर हमारे सामने दो प्रश्न आते हैं
1. ईश्वर कर्म-नियम के व्यवस्थापक के रूप में। 2. ईश्वर नैतिक-साध्य के रूप में।
कर्म-सिद्धान्त और ईश्वर- नैतिक-जीवन के लिए कर्म-सिद्धान्त में आस्था आवश्यक है। लगभग सभीधार्मिक-परम्पराएँ नैतिक शुभाशुभकृत्यों के प्रतिफल में विश्वास प्रकट कर कर्म-सिद्धान्त को स्वीकार करती हैं, लेकिन उसमें से कुछ कर्मों में स्वत: अपने फल देने की क्षमताकाअभावमानती हैं, जबकि दूसरी कर्मों में फल देने की स्वत: क्षमताको स्वीकार करती हैं। भारतीय-दर्शनों में सांख्य, योग, जैन, बौद्ध और मीमांसक कर्मों को फल देने में स्वतः सक्षम मानते हैं, जबकि न्याय-वैशेषिक और वेदान्त कर्मों में स्वत: फल देने की क्षमता का अभाव मानकर ईश्वर को फल-प्रदाता स्वीकार करते हैं। जैन, बौद्ध, सांख्य और मीमांसा-दर्शनों में किसी वैयक्तिक-ईश्वर का अस्तित्व ही स्वीकार नहीं किया गया है। योग-दर्शन में ईश्वर का अस्तित्व तो मान्य है, लेकिन वह केवल उपासना का विषय एवं श्रद्धा का केन्द्र है। कर्म नियम का व्यवस्थापक या शुभाशुभ कर्मों का फलप्रदाता नहीं है। ब्रह्मसूत्र पर आधारित वेदान्त-दर्शन में ईश्वर को शुभाशुभ कर्मों का फल-प्रदाता स्वीकार किया गया है। फिर भी, शांकर-दर्शन की तत्त्व-विवेचना में पारमार्थिक-दृष्टि से यह धारणा अत्यन्त निर्बल पड़ जाती है। उमसें फलप्रदाता ईश्वर और उसकी व्यवस्था की व्यावहारिक-सत्ता मात्र शेष रहती है। न्याय-वैशेषिक-दर्शन में ईश्वर को कर्म-नियम का व्यवस्थापक एवं कर्म-फल का प्रदाता स्वीकार किया गया है।
बौद्ध-दर्शन एवं पूर्वमीमांसा- दर्शन में कर्मको चेतना और स्वयं फल देने की क्षमता से युक्त माना गया है। सांख्य, योग एवं जैन-दर्शन कर्म को जड़ मानते हैं। जड़ कर्म अपना स्वत: फल कैसे दे सकते हैं, इस समस्या के प्रति न्याय-वैशेषिक-दर्शन में निम्न आक्षेप प्रस्तुत किए गए हैं
___ 1. जड़कर्म अचेतन होने के कारण स्वत: फल प्रदान नहीं कर सकते, क्योंकि फलप्रदान की क्रिया चेतन की प्रेरणा के बिना नहीं हो सकती।
2. कर्म का कर्ता जो चैतन्य है, वह भी फलप्रदाता नहीं माना जा सकता, क्योंकि कर्ता कभी भी स्वेच्छा से अशुभ कर्मों का फल प्राप्त करना नहीं चाहता, अत: फलप्रदाता ईश्वर को मानना आवश्यक है।
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