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________________ 466 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन छोड़ देती है। धर्म और नैतिकता के इस गठबन्धन को, जिसे भारतीय-विचारकों ने स्वीकार कर लिया था, तोड़ देने पर नैतिक-विचारणा की दृष्टि से अनेक वैचारिक-कठिनाइयों की उद्भावना सम्भव थी, अत: अनेक विचारकों ने इस सम्बन्ध को बनाए रखा। यद्यपि इस बात को लेकर विचारकों में मतभेद रहा किधर्म और नैतिकता में कौन प्राथमिक है। देकार्त, लाक प्रभूति विचारक ईश्वरीय-आदेश से नैतिक-नियमों की उत्पत्ति मानने के कारण धर्म को नैतिकता से पहले मानते हैं। उधर कांट, मैथ्यू आर्नल्ड, मार्टिंग आदि नैतिकता पर धर्म को अधिष्ठित करते हैं। कांट के अनुसार धर्म नैतिकता पर आधारित है और ईश्वर का अस्तित्व नैतिकता के अस्तित्व के कारण है। ईश्वर नीतिशास्त्र की आधारभूत मान्यता है। मैथ्यू आर्नल्ड का कथन है कि भावना से युक्त नैतिकता ही धर्म है।' धर्म और नैतिकता को अलग-अलग मानकर उनके सम्बन्धों की व्याख्या करना अपने में असंगत है। ज्ञान और श्रद्धा, जिनके आधार पर इन्हें अलग-अलग किया जाता है, निरपेक्ष रूप में अलग-अलग नहीं हैं। गीता में ज्ञान, भक्ति और कर्म, बौद्ध-दर्शन में शील, समाधि और प्रज्ञा तथा जैन-दर्शन में सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र को निरपेक्षरूपेण भिन्न-भिन्न नहीं माना गया है। भारतीय-चिन्तन की इस सही दिशा के समान पश्चिम में भी ब्रेडले और प्रिंगल पेटीसन आदि कुछ विचारकों ने सोचने का प्रयास किया है। ब्रेडले का कथन है कि नैतिकता से परे जाना नैतिक-कर्त्तव्य है और वह कर्त्तव्य हैधार्मिक होना। यहाँ पूर्व और पश्चिम के नैतिक-चिन्तन में धर्म और नैतिकता की एकरूपता या विभिन्नता का यह विचार-भेद समाप्त हो जाता है। ब्रेडले नैतिकता और धर्म के लिए दो अलगशब्दों का प्रयोग करते हैं। जब वे कहते हैं कि नैतिकता धर्म में समाप्त हो जाती है, तो उनका अर्थ नैतिकता के अस्तित्व का निषेध नहीं है। धर्म न तो नैतिकता-विहीन है, न नैतिकता धर्म-विहीन है। नैतिकता और धर्म आत्मपूर्णता की दिशा में दो अवस्थाएँ हैं। नैतिक-पूर्णता काआदर्श वास्तविक नहीं होता, वरन् यह पूर्णता की दिशा में मात्र प्रक्रिया है, जबकि धार्मिक-आदर्श वास्तविक पूर्ण होता है। ब्रेडले के अनुसार यह असम्भव है कि एक व्यक्ति धार्मिक होते हुए भी अनैतिकआचरण करे। ऐसी स्थिति में या तो वह धर्म का ढोंग कर रहा है, अथवा उसका धर्म ही मिथ्या है। ब्रेडले शुभाशुभ की सीमारेखा तक नैतिकता का क्षेत्र मानते हैं और उसके आगे धर्म का। उनकी मान्यता के अनुसार धर्म के क्षेत्र में शुभाशुभ का विचार समाप्त हो जाता है। भारतीय-चिन्तन यद्यपि नैतिकता और धर्म के बीच ऐसी कोई सीमारेखा नहीं खींचता, फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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