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________________ 450 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन मुक्तात्मा अनन्त-ज्ञान या पूर्ण ज्ञान से युक्त होता है। (2) दर्शनावरण-कर्म के नष्ट हो जाने से अनन्त-दर्शन प्रकट होता है। (3) वेदनीय-कर्म के क्षय हो जाने से विशुद्ध अनश्वर आध्यात्मिक-सुखों से युक्त होता है। (4) मोहनीय-कर्म के नष्ट हो जाने से यथार्थ दृष्टि (क्षायिक-सम्यक्त्व) से युक्त होता है। मोह-कर्म के दर्शनमोह और चारित्रमोहऐसे दो भाग किए जाते हैं। दर्शनमोह के प्रहाण से यथार्थ दृष्टि और चारित्रमोह के क्षय से यथार्थ चारित्र (क्षायिक-चारित्र) प्रकट होता है, लेकिन मोक्ष-दशा में क्रिया-रूप चारित्र नहीं होता, मात्र दृष्टि-रूप चारित्र होता है, अत: उसे क्षायिक-सम्यक्त्व के अन्तर्गत ही माना जा सकता है। वैसे आठ कर्मों की 31 प्रकृतियों के क्षय होने के आधार पर सिद्धों के 31 गुण माने गए हैं, उनमें यथाख्यातचारित्र को स्वतंत्र गुण माना गया है। (5) आयुकर्म के क्षय हो जाने से मुक्तात्मा अशरीरी होता है, अत: वह इन्द्रिय-ग्राह्य नहीं होता। (6) गोत्र-कर्म के नष्ट हो जाने से वह अगुरुलघु होता है, अर्थात् सभी सिद्ध समान होते हैं, उनमें छोटा-बड़ा या ऊंच-नीच का भेद नहीं होता। (7) अन्तरायकर्म का प्रहाण हो जाने से आत्मा बाधारहित होता है, अर्थात् अनन्त-शक्ति सम्पन्न होता है। अनन्त-शक्ति का यह विचार मूलत: निषेधात्मक ही है। यह मात्र बाधाओं का अभाव है, लेकिन इस प्रकार अष्ट-कर्मों के प्रहाण के आधार से मुक्तात्मा के आठ गुणों की व्याख्या मात्र एक व्यावहारिक संकल्पना ही है, उसके वास्तविक स्वरूप का विवेचन नहीं है, व्यावहारिक-दृष्टि से उसे समझने का प्रयास भर है। वस्तुतः, वह अनिर्वचनीय है। आचार्य नेमिचन्द्र स्पष्ट रूप से कहते हैं 'सिद्धों के इन गुणों का विधान मात्र सिद्धान्त के स्वरूप के सम्बन्ध में जो ऐकान्तिक-मान्यताएँ हैं, उनके निषेध के लिए है।'29 मुक्तात्मा में केवल-ज्ञान और केवल-दर्शन के रूप में ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग को स्वीकार करके मुक्तात्मा को जड़ मानने वाली वैभाषिक-बौद्धों और न्याय-वैशेषिकों की धारणा का प्रतिषेध किया गया है। मुक्तात्मा के अस्तित्व या अक्षयता को स्वीकार कर मोक्ष को अभावात्मक रूप में मानने वाले जड़वादी तथा सौत्रान्तिक बौद्धों की मान्यता का निरसन किया गया है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि मोक्षदशा का यह समग्र चित्रण अपना निषेधात्मक-मूल्य ही रखता है। यह विधान भी निषेध के लिए है। (ब) अभावात्मक-दृष्टिकोण- जैनागमों में मोक्षावस्था का चित्रण निषेधात्मक रूप से भी हुआ है। आचारांग में मुक्तात्मा का निषेधात्मक-चित्रण इस प्रकार हुआ हैमोक्षावस्था में समस्त कर्मों का क्षय हो जाने से मुक्तात्मा में समस्त कर्मजन्य उपाधियों का भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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