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भारतीय आचार - दर्शन: एक तुलनात्मक अध्ययन
कायक्लेश का समर्थक मानते हैं, उन्हें यहाँ एक बार पुन: विचार करना चाहिए। यदि उसका मन्तव्य कायाक्लेश का होता, तो जैन दर्शन स्व- पारितापनिकी - क्रिया को पाप के आगमन का कारण नहीं मानता।
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5. प्राणातिपातकी - क्रिया- हिंसा करना । इसके भी दो भेद हैं- 1. स्वप्राणातिपातकी-क्रिया, अर्थात् राग-द्वेष एवं कषायों के वशीभूत होकर आत्म के स्वस्वभाव का घात करना तथा 2. परप्राणातिपातकी - क्रिया, अर्थात् कषायवश दूसरे प्राणियों की हिंसा करना । 6. आरम्भ क्रिया- जड़ एवं चेतन वस्तुओं का विनाश करना ।
7. पारिग्राहिकी क्रिया- जड़ पदार्थों एवं चेतन प्राणियों का संग्रह करना । 8. माया - क्रिया- कपट करना ।
9. राग - क्रिया- आसक्ति करना । यह क्रिया मानसिक - प्रकृति की है, इसे प्रेम प्रत्ययिकी - क्रिया भी कहते हैं।
10. द्वेष- क्रिया- द्वेष - वृत्ति से कार्य करना ।
11. अप्रत्याख्यान - क्रिया- असंयम या अविरति की दशा में होने वाला कर्म अप्रत्याख्यान - क्रिया है ।
12. मिथ्यादर्शन-क्रिया- मिथ्यादृष्टित्व से युक्त होना एवं उसके अनुसार क्रिया
करना ।
13. दृष्टिजा - क्रिया - देखने की क्रिया एवं तज्जनित राग- -द्वेषादिभावरूप- क्रिया । 14. स्पर्शन - क्रिया - स्पर्श सम्बन्धी क्रिया एवं तज्जनित राग-द्वेषादि भाव | इसे पृष्टा - क्रिया भी कहते हैं ।
15. प्रातीत्यकी-क्रिया- जड़ पदार्थ एवं चेतन वस्तुओं के बाह्य-संयोग या आश्रय उत्पन्न रागादि भाव एवं तज्जनित क्रिया ।
16. सामन्त क्रिया - स्वयं के जड़ पदार्थ की भौतिक सम्पदा तथा चेतन प्राणिजसम्पदा; जैसे पत्नियाँ, दास, दासी अथवा पशु, पक्षी इत्यादि को देखकर लोगों के द्वारा की हुई प्रशंसा से हर्षित होना। दूसरे शब्दों में, लोगों के द्वारा स्वप्रशंसा की अपेक्षा करना। सामन्तवाद का मूल आधार यही है।
17. स्वहस्तिकी-क्रिया- स्वयं के द्वारा दूसरे जीवों को त्रास या कष्ट देने की क्रिया । इसके दो भेद हैं- 1. जीव - स्वहस्तिकी, जैसे-चाँटा मारना, 2. अजीवस्वहस्तिकी, जैसे-डण्डे से मारना ।
18. नैसृष्टिकी - क्रिया- किसी को फेंककर मारना। इसके दो भेद हैं- 1. जीवनिसर्ग-क्रिया; जैसे-किसी प्राणी को पकड़कर फेंक देने की क्रिया, 2. अजीव - निसर्गक्रिया; जैसे- बाण आदि मारना ।
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