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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
3. अशुभ अनैतिक-कर्म पाप-कर्म अकुशल (कृष्ण) कर्म विकर्म
आध्यात्मिकता या नैतिक-पूर्णता के लिए हमें क्रमश: अशुभ कर्मों से शुभ कर्मों की ओर और शुभ कर्मों से शुद्ध कर्मों की ओर बढ़ना होगा। आगे हम इसी क्रम से उन पर थोड़ी अधिक गहराई से विवेचन करेंगे। 2. अशुभ या पाप-कर्म
जैन आचार्यों ने पाप की यह परिभाषा की है कि वैयक्तिक-सन्दर्भ में जो आत्मा को बन्धन में डाले, जिसके कारण आत्मा का पतन हो, जो आत्मा के आनन्द का शोषण करे और आत्मशक्तियों का क्षय करे, वह पाप है।'सामाजिक-सन्दर्भ में जो परपीड़ा या दूसरों के दुःख का कारण है, वह पाप है (पाप य परपीडन)। वस्तुत:, जिस विचार एवं आचार से अपना और पर का अहित हो और जिससे अनिष्ट फल की प्राप्ति हो, वह पाप है। नैतिकजीवन की दृष्टि से वे सभी कर्म, जो स्वार्थ, घृणा या अज्ञान के कारण दूसरे का अहित करने की दृष्टि से किए जाते हैं, पाप-कर्म हैं। इतना ही नहीं, सभी प्रकार के दुर्विचार और दुर्भावनाएँ भी पाप-कर्म हैं।
पाप या अकुशल कर्मों का वर्गीकरण
जैन-दृष्टिकोण- जैन-दार्शनिकों के अनुसार पाप-कर्म 18 प्रकार के हैं- 1. प्राणातिपात (हिंसा), 2. मृषावाद (असत्य भाषण), 3. अदत्तादान (चौर्य कर्म), 4. मैथुन (काम-विकार), 5. परिग्रह (ममत्व, मूर्छा, तृष्णा या संचयवृत्ति), 6. क्रोध (गुस्सा), 7.मान (अहंकार), 8. माया (कपट, छल, षडयन्त्र और कूटनीति), 9. लोभ (संचय या संग्रह की वृत्ति), 10. राग (आसक्ति), द्वेष (घृणा, तिरस्कार, ईर्ष्या आदि), 11. क्लेश (संघर्ष, कलह, लड़ाई, झगड़ा आदि), 12. अभ्याख्यान (दोषारोपण), 13. पिशुनता (चुगली), 14. परपरिवाद (परनिन्दा), 15. रति-अरति (हर्ष और शोक), 16. माया-मृषा (कपट सहित असत्य भाषण), 17. मिथ्यादर्शनशल्य (अयथार्थ जीवनदृष्टि)
बौद्ध-दृष्टिकोण- बौद्ध-दर्शन में कायिक, वाचिक और मानसिक-आधारों पर निम्न 10 प्रकार के पापों, या अकुशल पापों, या अकुशल कर्मों का वर्णन मिलता है।' (अ) कायिक-पाप- 1. प्राणातिपात (हिंसा), 2. अदत्तादान (चोरी),
___3. कामेसुमिच्छासार (कामभोग सम्बन्धी दुराचार)। (ब) वाचिक-पाप- 4. मुसावाद (असत्य भाषण), 5. पिसुनावाचा (पिशुन
वचन), 6. फरूसावाचा (कठोर वचन), 7. सम्फलाप (व्यर्थ आलाप)।
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