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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
बीज-वृक्ष की परम्परा समाप्त हो जाती है, वैसे ही व्यक्ति के राग, द्वेष और मोह का प्रहाण हो जाने पर उस व्यक्ति की कर्म-विपाक-परम्परा का अन्त हो जाता है। 12. कर्मफल-संविभाग
कर्म-सिद्धान्त के सन्दर्भ में यह विचारणीय प्रश्न है कि क्या एक व्यक्ति अपने किए हुएशुभाशुभ कर्मों का फल दूसरे व्यक्ति को दे सकता है, अथवा नहीं दे सकता? क्या व्यक्ति अपने किए हुए शुभाशुभ कर्मों का ही योग करता है, अथवा दूसरों के द्वारा किए हुए शुभाशुभ का फल भी उसे मिलता है ? इस सन्दर्भ में समालोच्य आचार-दर्शनों के दृष्टिकोण पर भी विचार कर लेना आवश्यक है। जैन-दृष्टिकोण ___जैन-विचारणा के अनुसार प्राणी के शुभाशुभ कर्मों के प्रतिफल में कोई भागीदार नहीं बन सकता। जो व्यक्ति शुभाशुभ कर्म करता है, वही उसका फल प्राप्त करता है। उत्तराध्ययनसूत्र में स्पष्ट विधान है, संसारी जीव स्व एवं पर के लिए जो साधारण कर्म करता है, उस कर्म के फल-योग के समय वे बन्धु-बान्धव (परिजन) हिस्सा नहीं लेते हैं। इसी ग्रन्थ में प्राणी की अनाथता का निर्णय करते हुए यह बताया गया है कि न तो माता-पिता
और पुत्र-पौत्रादि ही प्राणी का हिताहित करने में समर्थ हैं। भगवतीसूत्र में भगवान् महावीर से जब यह प्रश्न किया गया कि प्राणी स्वकृत सुख-दुःख का भोग करते हैं, या परकृत सुखदु:ख का भोग करते हैं ? तो महावीर का स्पष्ट उत्तर था कि प्राणी स्वकृत सुख-दु:ख का भोग करते हैं, परकृत का नहीं। इस प्रकार, जैन-विचारणा में कर्मफल-संविभाग को अस्वीकार किया गया है। बौद्ध-दृष्टिकोण
बौद्ध-दर्शन में बोधिसत्व का आदर्श कर्मफल-संविभाग के विचार को पुष्ट करता है। बोधिसत्व तो सदैव यह कामना करते हैं कि उनके कुशल कर्मों का फल विश्व के समस्त प्राणियों को मिले। फिर भी, बौद्ध-दर्शन यह मानता है कि केवल शुभकर्मों में ही दूसरे को सम्मिलित किया जा सकता है। बौद्ध-दृष्टिकोण के सम्बन्ध में आचार्य नरेन्द्रदेव लिखते हैं कि सामान्य नियम यह है कि कर्म स्वकीय हैं, जो कर्म करता है, वही (सन्तानप्रवाह की अपेक्षा से) उसका फल भोगता है, किन्तु पालीनिकाय में भी पुण्य परिणामना (पत्तिदान) है। वह यह भी मानता है कि मृत की सहायता हो सकती है। स्थविरवादी प्रेत और देवों को दक्षिणा देते हैं, अर्थात् भिक्षुकों को दिए हुए दान (दक्षिणा) से जो पुण्य संचित होता है, उसको देते हैं। बौद्धों के अनुसार हम अपने पुण्य में दूसरे को सम्मिलित कर सकते हैं, पाप में नहीं। हिन्दुओं के समान ही बौद्ध भी प्रेतयोनि में विश्वास करते हैं और प्रेत के निमित्त जो
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