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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
निमित्त-कारण के रूप में कर्म-वर्गणा तथा उपादान-कारण के रूप में आत्मा को स्वीकार किया गया है। 8. कर्म का भौतिक स्वरूप
जैन-दर्शन में बन्धन और मुक्ति की प्रक्रिया की व्याख्या बिना अजीव (जड़) तत्त्व के विवेचन के सम्भव नहीं। आत्मा के बन्धन का कारण क्या है ? जब यह प्रश्न जैनदार्शनिकों के समक्ष आया, तो उन्होंने बताया कि आत्मा के बन्धन का कारण मात्र आत्मा नहीं हो सकता। पारमार्थिक-दृष्टि से विचार किया जाए, तो आत्मा में स्वत: के बन्धन में आने का कोई कारण नहीं है। जैसे बिना कुम्हार, चाक आदि निमित्तों के मिट्टी स्वत: घट का निर्माण नहीं कर सकती, वैसे ही आत्मा स्वत: बिना किसी बाह्य-निमित्त के कोई भी ऐसी क्रिया नहीं कर सकता, जो उसके बन्धन का कारण हो। वस्तुत:, क्रोध आदि कषाय, राग, द्वेष एवं मोह आदि बन्धक मनोवृत्तियाँ भीआत्मा में स्वत: उत्पन्न नहीं हो सकतीं, जब तक कि वे कर्मवर्गणाओं के विपाक के रूप में चेतना के समक्ष उपस्थित नहीं होती। यदि मनोवैज्ञानिक-दृष्टि से कहा जाए, तो जिस प्रकार शरीर-रसायनों और रक्तरसायनों के परिवर्तन हमारे संवेगों (मनोभावों) का कारण होते हैं और संवेगों के कारण हमारे रक्तरसायन
और शरीररसायन में परिवर्तन होते हैं, दोनों परिवर्तन परस्पर सापेक्ष हैं, उसी प्रकार कर्म के लिए आत्मतत्त्व और जड़ कर्म-वर्गणाएँ परस्पर सापेक्ष हैं। जड़ कर्म-वर्गणाओं के कारण मनोभाव उत्पन्न होते हैं और उन मनोभावों के कारण पुन: जड़ कर्म-परमाणुओं का आस्रव एवं बन्ध होता है, जो अपनी विपाक-अवस्था में पुन: मनोभावों (कषायों) का कारण बनते हैं। इस प्रकार, मनोभावों (आत्मिक-प्रवृत्ति) और जड़ कर्म-परमाणुओं के परस्पर प्रभाव का क्रम चलतारहता है। जैसे वृक्ष और बीज में पारस्परिक सम्बन्ध है, वैसे ही आत्मा के बन्धन की दृष्टि से आत्मा की अशुद्ध मनोवृत्तियों (कषाय एवं मोह) और कर्म-परमाणुओं में पारस्परिक-सम्बन्ध है। जड़ कर्म-परमाणु और आत्मा में बन्धन की दृष्टि से क्रमशः निमित्त और उपादान का सम्बन्ध माना गया है। कर्म-पुद्गल बन्धन का निमित्त-कारण है और आत्मा उपादान-कारण है।
जैन-विचारक एकान्त रूप में न तो आत्मा को ही बन्धन का कारण मानते हैं और नजड़ कर्म-वर्गणाओं को, अपितु यह मानते हैं कि जड़ कर्म-वर्गणाओं के निमित्त से आत्मा बन्ध करता है। द्रव्य-कर्म और भाव-कर्म
कर्म के द्रव्यात्मक और भावात्मक-ये दो पक्ष हैं। प्रत्येक कर्म-संकल्प के हेतु के रूप में विचारक (उपादान-कारण) और उस विचार का प्रेरक (निमित्त-कारण), दोनों ही
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