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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
अनुभूति के कारण की खोज बाह्य-जगत् में नहीं करता, वरन् आन्तरिक-जगत् में करता है। वह स्वयं चेतना में ही उसके कारण को खोजने की कोशिश करता है। 3. कर्म-सिद्धान्त का उद्भव
कर्म-सिद्धान्त का उद्भव कैसे हुआ, यह विचारणीय विषय है। भारतीय-चिन्तन की जैन. बौद्ध और वैदिक-तीनों परम्पराओं में कर्म-सिद्धान्त का विकास तो हआ है, लेकिन उसके सर्वांगीण विकासका श्रेय जैन-परम्परा कोही है। पं. सुखलालजीका कथन है कि 'यद्यपि वैदिक-साहित्य तथा बौद्ध-साहित्य में कर्मसम्बन्धी विचार हैं, पर वह इतना अल्प है कि उसका कोई खास ग्रंथ उस साहित्य में दृष्टिगोचर नहीं होता। उसके विपरीत, जैन-दर्शन में कर्मसम्बन्धी विचार सूक्ष्म, व्यवस्थित और अति विस्तृत है।' वैदिकपरम्परा की प्रारम्भिक अवस्था में उपनिषदकाल तक कोई ठोस कर्म-सिद्धान्त नहीं बन पाया था, यद्यपि वैदिक-साहित्य में ऋत् के रूप में उसका अस्पष्ट निर्देश अवश्य उपलब्ध है। प्रो. मालवणिया का कथन है कि आधुनिक विद्वानों में इस विषय में कोई विवाद नहीं है कि उपनिषदों के पूर्वकालीन वैदिक-साहित्य में कर्म या अदृष्ट की कल्पना का स्पष्ट रूप दिखाई नहीं देता।कर्म कारण है-ऐसा वाद भी उपनिषदों का सर्वसम्मतवाद हो, यह भी नहीं कहा जा सकता।''वैदिक-साहित्य में ऋत के नियम को स्वीकार किया गया है, लेकिन उसकी विस्तृत व्याख्या उसमें उपलब्ध नहीं है। पूर्व युग में जिन विचारकों ने इस वैचित्र्यमय सृष्टि, वैयक्तिक-विभिन्नताओं, व्यक्ति की विभिन्न सुखद-दुःखद अनुभूतियों तथा सद्असद्प्रवृत्तियों का कारण जानने का प्रयास किया था, उनमें से अधिकांश ने इस कारण की खोज बाह्य तथ्यों में की। उनके इन प्रयासों के फलस्वरूप विभिन्न धाराएँ उद्भूत हुईं। 4. कारण सम्बन्धी विभिन्न मान्यताएँ
श्वेताश्वतरोपनिषद्, सूत्रकृतांग, अंगुत्तरनिकाय, महाभारत के शान्तिपर्व तथा गीता में इन विविध विचारधाराओं के सन्दर्भ उपलब्ध हैं। उनमें कुछ प्रमुख मान्यताएँ इस प्रकार हैं
1. कालवाद- समग्र जागतिक-तथ्यों, वैयक्तिक-विभिन्नताओं तथा व्यक्ति के सुख-दुःख एवं क्रियाकलापों का एकमात्र कारण काल है।
2.स्वभाववाद-जो भी घटित होता है, या होगा, उसका आधार वस्तुका अपना स्वभाव है। स्वभाव का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
3. नियतिवाद- घटनाओं का घटित होना पूर्वनियत है और वे उसी रूप में घटित होती हैं। उन्हें कोई कभी भी अन्यथा नहीं कर सकता। जैसा होना होता है, वैसा ही होता है।
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