SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 300 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन समीक्षा यह भवितव्यता या पूर्वनिर्धारणवादी नियतिवाद आचारदर्शन को यदृच्छावाद के दोषों से बचाकर नैतिक-उत्तरदायित्व की व्याख्या करने का प्रयास करता है, साथ ही नैतिक-जीवन में सन्तोष पर बल देते हुए भूत और भविष्य की दुश्चिन्ताओं एवं आकांक्षाओं से बचाता है, लेकिन वह स्वयं एक दूसरी अति की ओर चला जाता है, जिसमें नैतिकउत्तरदायित्व की व्याख्या सम्भव नहीं होती। जब व्यक्ति के समस्त क्रियाकलापों को पूर्वनियत मान लिया जाता है, तो नैतिक-उत्तरदायित्व एवं नैतिक-आदेश का कोई अर्थ नहीं रहता। 2.कालवाद कालवाद यह मानता है कि काल ही प्रमुख तत्त्व है। काल के द्वारा ही क्रियाकलापों का निर्धारण होता है। सृष्टि की सारी क्रियाएँ एवं घटनाएँ काल के अधीन हैं और काल के गर्भ में स्थित हैं। अतीत, वर्तमान और भविष्य, सभी काल के गर्भ में समाहित हैं। कालातीत दृष्टि से विचार करने पर भविष्य भविष्य नहीं रहेगा और सभी घटनाएँ काल में पूर्वनियत होंगी। यदि घटनाएँ काल में नियत हैं, तो व्यक्ति उसमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकता और इस अर्थ में व्यक्ति के पुरुषार्थ और स्वतन्त्रताका कोई अर्थ नहीं रह जाता। अथर्ववेद में कहा गया है कि काल ने पृथ्वी को उत्पन्न किया, काल के आधार पर सूर्य तपता है, काल के आधार पर ही समस्त भूत रहते हैं, काल के कारण ही आँखें देखती हैं, काल ही ईश्वर है। वह प्रजापति का भी पिता है। महाभारत में काल को समस्त जगत् के सुख-दुःख, जीवनमरण आदि का कारण कहा गया है- लाभ-हानि, सुख-दुःख, काम-क्रोध, अभ्युदय और पराभव तथा बन्धन और मोक्ष, सभी काल के द्वारा होता है। गीता में भीजीवन-मरण आदि का कारण कालही कहा गया है। जैन-ग्रन्थ गोम्मटसार में इस सिद्धान्त को निम्न रूप में प्रस्तुत किया गया है, 'काल ही सबको उत्पन्न करने वाला एवं नष्ट करनेवाला है। वह सोए हए लोगों में भी जागता है। उसे कोई भी धोखा नहीं दे सकता।" इस प्रकार, कालवाद काल को महत्व देकर यह बताता है कि काल के पकने पर ही कार्यनिष्पत्ति सम्भव है। काललब्धि की परिपक्वता ही वैयक्तिक-विकास में सहायक या बाधक बनती है। कालवाद कानैतिक-जीवन में योगदान ___कालवाद कर्तृत्वभाव एवं अहंकार का निराकरण कर किस रूप में नैतिक-विकास में सहायक होता है, इसका सुन्दर चित्रण महाभारत में मिलता है। बलि इस सिद्धान्त के माध्यम से इन्द्रको समभाव का सुन्दर पाठ पढ़ाते हैं। वे कहते हैं, सभी का कारण काल है, अतः विद्वान् पुरुष नाश, विनाश, ऐश्वर्य, सुख-दुःख के प्राप्त होने पर न तो प्रसन्न होता है और नखेद करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy